खुद से नजरें चुराने के दिन आ गए
दर्द में मुस्कुराने के दिन आ गए
प्यार के गीत गाने के दिन आ गए
फूल बनने को कलियाँ मचलने लगीं
भ्रंग के गुनगुनाने के दिन आ गए
भूल पाएंगे तुमको नहीं हम कभी
ऑसू-ऑसू हो जाने के दिन आ गए
जान पाए न हम उनकी चालाकियां
दिन में तारे दिखाने के दिन आ गए
चोट पर चोट दे घाव दिल में किया
सिर्फ दिल को दुखाने के दिन आ गए
लूटकर ले गया दिल के अरमान सब
फिर बहाने बनाने के दिन आ गए
जाल में उसके फिर जिंदगी फस गई
जान उससे बचाने के दिन आ गए
जो हुई भूल हमसे है वो किससे कहें
खुद से नजरें चुराने के दिन आ गए
बैठ कर साथ में एक दूजे की 'जय'
सिर्फ सुनने-सुनाने के दिन आ गए
*
~जयराम 'जय'
'पर्णिका'इ-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ०प्र०)
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