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संरक्षक ,आचार्य कुल, वर्धा, राष्ट्रीय शिक्षा सम्मान ,राष्ट्रीय हिंदी सम्मान राधाकृष्णन शिक्षा पुरस्कार एवं शताब् हिंदी साहित्य सम्मान प्राप्त, पूर्व प्राचार्य डॉ सच्चिदानंद प्रेमी

संरक्षक ,आचार्य कुल, वर्धा, राष्ट्रीय शिक्षा सम्मान ,राष्ट्रीय हिंदी सम्मान राधाकृष्णन शिक्षा पुरस्कार एवं शताब् हिंदी साहित्य सम्मान प्राप्त, पूर्व प्राचार्य डॉ सच्चिदानंद प्रेमी

दिव्य रश्मि पत्रिका प्रकाशन के आठ वर्ष पूरे हो गए और नए वर्ष में धमाकेदार प्रवेशांक देकर इसने अपनी उपलब्धियों की भूमिका प्रस्तुत की है। वस्तुतः सूखे तरुओं के बगीचे में भींगे नयनों की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। पाठक पिपासा परिश्रांति समय में पत्रिका का प्रकाशन एक दुरुह कर्म है। इसकी सफलता के अनेक आयाम होते हैं।
लेखक से लेख लेना -पत्रिका के अनुरूप ,राष्ट्र की भावना के अनुरूप ,सामाजिक चेतना के अनुरूप जो समय और पाठक के धरातल पर खरा उतर सके, फिर लेखों का चयन करना जिनके लेख नहीं छपते हैं उनके मन पर मरहम पट्टी करना जिनके लेख छपते हैं उन्हें पत्रिका पहुंचाना, अर्थव्यवस्था करना, पाठक की व्यवस्था करना,
मैं तो आरंभ से इस संस्था से जुड़ा हुआ हूँ और मैं इसकी सारी बाधाओं का साक्षी रहा हूँ। इसलिए स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि यह संपादक के अकथ और अथक परिश्रम का ही फल है कि 8 वर्षों तक अबाध गति से निकलने वाली पत्रिका आज हुंकार के साथ नए वर्ष में प्रवेश कर गई , प्रशंसकों की कली पुष्पित हो गई। आज जब पत्रिका का प्रकाशन कई चुनौतियों से भरा हुआ है -सरकार की चुनौती, पाठक की चुनौती और तथाकथित अध्यात्म से विमुख एवं अध्यन, जानकारी से विमुख लोगों की चुनौती जो राष्ट्रीयता पर प्रश्न खड़ा करते हैं , राष्ट्रीयता के प्रश्न गाकर राष्ट्र को घायल करते हैं, ऐसी स्थिति में पत्रिका की अवाध गति से प्रकाशन कर जिस मुकाम तक पत्रिका पहुंची है वह निश्चित रूप से प्रशंसनीय है ,अनुशंसिय है।
इस पत्रिका के संपादक डॉ राकेश दत्त मिश्र जी से प्राय:वार्ता होती है ।इन्हें में जब भी देखता हूंँ प्रसन्न- चित्र देखता हूंँ । इनके चेहरे पर हंँसी खेलती रहती है, होठों पर मुस्कान नृत्य करता रहता है ।जिस प्रकाशन -तनाव को लेकर बड़े-बड़े संपादक की खुशी काफूर हो जाती है उसी परिस्थिति में अपने को समायोजित कर इन्होंने एक ऐसी रेखा खींची है जिसके समानांतर दूसरी खिंचने में बड़ों-बड़ों के पसीने छूट जाते हैं। जो कुछ जी मैं कहूंगा शायद लोग इसे प्रशंसा कह सकते हैं परंतु मैं सच्चाई कह रहा हूँ। प्रशंसा और सच्चाई में अंतर है । सच्चाई तो कहनी चाहिए ।किसी के परिश्रम को उजागर नहीं करेंगे तो परिश्रम सिसकता रह जाएगा।
कल राष्ट्र के निर्माण में यह पत्रिका अग्रणी भूमिका निभाएगी, यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है। मैं इसके अबाध गति से 8 वर्षों तक के प्रकाशन के लिए इन्हें बधाई देता हूं तथा नए वर्ष के लिए शुभकामनाएंँ
डॉ सच्चिदानंद प्रेमी
संरक्षक ,आचार्य कुल, वर्धा, राष्ट्रीय शिक्षा सम्मान ,राष्ट्रीय हिंदी सम्मान राधाकृष्णन शिक्षा पुरस्कार एवं शताब् हिंदी साहित्य सम्मान प्राप्त, पूर्व प्राचार्य आनंद विहार कुंज ,माड़नपुर, गया
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