पाप की परतें खुलेंगी, धीरे धीरे,
झूठ से परदा हटेगा, धीरे धीरे।सच कब छिपा सामने आयेगा,
तम मिटेगा भोर होगा, धीरे धीरे।
जो छिपा अब तलक, सब खुलेगा,
भेद घर का भेदियों से, सब खुलेगा।
शान्त जल में कंकरें फैंके हैं तुमने,
लहरियों का वेग कितना, सब खुलेगा।
कौन रक्षक कौन भक्षक, सामने सब आयेगा,
सत्य विचलित पर पराजित, हो नहीं पायेगा।
मान अपमान सम्मान, आकलन करना होगा,
दोषियों की जाँच, कोई बख्शा नहीं जायेगा।
डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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