छेंका-वरच्छा(मगही कहानी )
डॉ रामकृष्ण मिश्रविआह के बनिस्पत लड़िका आउ लड़की पच्छ में लेन -देन, मने कि तिलक दहेज के बारे में तय - तमन्ना हो गेला पर विचार होबऽ हे कि बरच्छा हो जाए। कुछ तय तमन्ना के दरब में से दछिना धरा देल जाए ताकि लड़का ओला कोई दुसरा से बात- चीत न कर सकथ। इहाँ से बिआह के करमठ के सिरीगनेस हो जाहे। वरच्छा कोई मनगुप्ता बात नऽहे।एकरा में हिते-कुटूमे, गाँव-घर सब के जना देल जाने जे में लोग जान लेते कि फलनमा के बेटाआउ फलनमा के बेटी के बिआह तय हो गेल।अब बेटी ओला के कहीं आउ ढ़ूँढे न जाए पड़त न बेटा ओला किहाँ कोई अगुआ औतन। अगर अनजान से कोई आइओ गेलन तो उनका कह देल जा हल कि अपने देर कर देली ,ई बर बिक गेल।
छेंका -बरच्छा के बादे से घर के महौल , देह अउ दिमाग दुनों तरह से बदलल निअन लगे लगऽ हे।
बूढ पुरनिया के तो ठोरे पर विवाह ओला गीत उतरल रहऽ हे बाकि मरदनन के तो अपने इज्जत परतिस्ठा बचावेला समाज के रीत रिवाज में कुछ टेंढ-बेढ इया ऊँच -नीच न हो जाए एकरे फिकिर जादे धरायल रहऽ हे।बेटिहा के तय दहेज तिलक के समान आउ बराती के सर सोआगत के बनवस करे के फिकिर माथे सवार रहऽ हे। ई गुने एकर महत्ता भारी हे। ई करमठ तिलक से तनी अलग से इया कह सकऽ ही कि एक तरह से तिलक समारोह के छोट रूप से।एकरा फलदानो कहल जाहे।
एकरा में लड़की ओलन लड़िका बास्ते कपड़ा ,फल,मिठाई दे के दरव,रुपया हाथ में धरा दे हथ।एकरा आजोजन भी मंगलाचरन,गौरी गनपति आदि के पूजन के साथ करल जाहे।उहाँ पर जेतना जनानी मर्दानी बेटा,बेटिहा दूनो पच्छ ओलन असिरवाद दे के सुभ मनावऽ हथ।
बेटिहा के बिदाई खनी लड़की के बास्ते कपड़ा ,सिंगार के समान ,पूआ ,लड्डू, खाजा खचिआ में सरिया के दे के बिदाई कर देल जा हे।
अइसन में दूनों पच्छ अपन एकदम करीबी लोग के बुलावऽ हथ ।जादे जलसा तो बेटा किहाँ तिलक समारोह में होबऽ हे।
अइसे छेंका के अनेक ढंग हे। ई ठीक रेल के सीट रिजर्वेसन से कम थोड़े हे।हो गेल तो हो गेल।पचास बरिस पहिले सब सिधइ पर रह के तय तमन्ना करऽ हलथी ।कहियो कोई छिपाओ -दुराओ न होबऽ हल इ। हो सकऽ हे कहियो कोई धोखेबाजी से बात बना लेलथी होएत ओकर बाद से गड़बड़ी सुरू हो गेल होएत।न तो पहिले ठाकुर जी के नगीने कुछ दरब रखा जा हल आई बिहार तय।गते-गते देखा सिसकी ई छेंका छेकी लड़िका से घूम के लड़की दने बढ़ गेल।लड़की देखावे के एक तरह से परचलन चला देवल गेल कि छेंका -छेकी के पहिले लड़की देखा दऽ कि उ आन्हर लांगड़ इया गुंग बहिर तो न हे।। सौंठ के तो सीमा ने होवे।सिनेमा देख के मन मिजाज बौराइए जा हे।से अब तो लड़का लड़की दुश्मनों के सारे बइठा के एके साथे हो जाहे ।एकरा मेंकपड़ा-लत्ता फल-मिठाई के लेन-देल तो होते करऽ से एगो आई रिवाज हो गेल अँगूठी पहिनावे के।लड़का लड़की के आई लड़की लड़का के अँगुरी में पहिरावत। दुश्मनों पच्छ के लोग खूब फोटो खिंचवैतन आउ हहारों होएत।
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