थोड़ा तो त्याग चाहिए
जीवन में प्यार के लिए।।आँगन की मिट्टी भी माँगती नमी
हवाएँ बहारों की जानती जमीं।
नैसर्गिक शैत्य चाहिए
सुख के आधार केलिए।।
घर की दीवारे जब अनसुना करें
फूलों को हँसने से भी मना करेंं
एक नयी झोपड़ी रचें
बस नये बहार केलिए।।
धूल-धूल खेलता न आइना कभी
खुद का भी तो कर मोआइना कभी।
आगत अवसर खड़ा रहे
सहृदय आभार केलिए।।
व्योम दर्शी गीत के अब मायने क्या
धरा बोधी व्यथाओं को तो जरा लिखिए ।।
स्वर्ण थालों में सजाये अनगिनत सपने
नहीं उनमें एक भी हो सके हैंं अपने।
शब्द कारीगरी में ही वेदना गुम है,
क्रंदनी जड़ कथाओं को तो जरा लिखिए।।
जो भला है बाँटता आकाश गंगा सा
बुभुक्षा का ठोस कारण प्यास चंगा सा।
छाँह में बैठा हुआ ललकारता अविराम
धूप को, यह वंचना भी तो जरा लिखिए।।
देह की नैतिकी धाराएँ बहकती हैं, ,
और अतर भाव की ज्वाला सुलगती हैं।
स्वत्व का संदर्भ जिसने होम कर रक्खा,
उस भले उत्सर्ग को भी तो जरा लिखिए।।
***********
ड़ॉ रामकृष्णसंज्ञान, विष्णू पद मार्ग, करसीली गया, बिहार
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com