जब अचानक ही किसी की याद आती है।।
विगत की संस्मर्य पुस्तक के खुले पन्नेप्रेरणा बनती मधुर ज्यों छिले हों गन्ने,
या कि अलकापुरी प्रणय कथा उभर पडती
या कि वृंदावनी सी परिवाद लाती है।।
एक सिहरन सी अपरिचित चाह की वंशी,
ध्वनित हो उत्फुल्लता की नाचती हंसी,
या मयूरी वासना के मोक्ष तक जा कर,
चाँदनी की स्वेदिमा ही लाँघ जाती है।।
तिरोहित सब विगत के सपने उभरते हैं
काग भावी समय के मन से उचरते हैं,
शून्य में भी पार्थ का सा शंख बज उठता, कहीं कोई व्रती रंगोली सजाती है।।
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