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कुछ पाना है तो कुछ खोना ही पड़ता है

कुछ पाना है तो कुछ खोना ही पड़ता है

कुछ पाना है तो कुछ खोना ही पड़ता है,
रिश्ता जिसे निभाना, रोना ही पड़ता है।
सब कुछ लगा दांव पर भी ख़ुश दिखता,
रिश्तों का भार निज काँधे ढोना पड़ता है।


लुटा दिया सब रिश्तों की मर्यादा ख़ातिर,
कितनी रातें तन्हा काटी, रिश्तों ख़ातिर।
जिन रिश्तों को फ़र्ज़ समझ सदा निभाया,
हमको घर से बेघर कर डाला रिश्तों ख़ातिर।

डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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