तिलक/धन बट्टी/बर वरन (मगही कहानी )
डॉ रामकृष्ण मिश्रबिआह जिनगी में एगो अइसन करमठ हे जे में बुतरूसे बूढ़ पुरनियाँ तक के मिजाज हाथ से पिछुले लगऽ हे। बिआह के तय- तमन्ना होएते घरवैया सब तरहे सरंजाम के जुगाड़ में भिड़ जा हथ। फिन तय दिन अपन हित कुटुम, गोरिया भाई साथे बेटा ओला के दुआरी पर हाजिर हो जा हथ।
ई जे तिलक समारोह के लोग धनबटिआ/बरबरन/ आउ तिलक भी कह ऽ हथ।
ई समारोह में बर पच्छ के दुआरी पर के सोभा के महातम हे। बर के पिता के समाज में कइसन पइठ, परतिस्ठा, समाजिक संरच्छन ,आचार -वेओहार हे ,ओकर बढिया से परिचय मिल जाहे। तिलकधरु बनके जाए ओला लोग अपन -अपन दिरिस्टी से बर के घर, दूरा दलान, आँगन खँढ़ी-कोला, गउसाला बैल-हर आदि सब के जोखे में लग जाहलन। बिलुल कुछ आपुस में फुसुर -फुसुर करके अपन विचारो साझा करऽ हथ।
तिलक में जाए के एगो ललको होबऽ हे। का लइका का सेआन सबके लगऽ हे कि तिलकधरुआ बन के जाए के चही। नया गाँव, नया घर ,नयकन लोग से मिले- जुले के तो एही मौका हे, एगो बात आउ कि लोग के सीखे के सामिलात मौका तो अइसनके काज परोजने में हो सकऽ हे। ई सेती सब के बटोर के ले जाएल जाहे।
तिलक में जाए के तैयारी एगो करमठे हो जाहे। तिलक में देवे ला समान जइसे, पूजा के समान, धान, चउका के बरतन, गहरा परात, कठौत थाली, लोटा गिलास कटोरा नरिअर के अलाे बर के कपड़ा फल आउ नफासती समान अगर गछल होए। सबके सरिआ के रखे के पहिले अँगना मे गोतिआ भाई के देखा देल जाहे। बोलहटा देके देखा के जे साथे जएतन उनका भोजनो करा देल जाहे तब घरेसे परस्थान होबऽ हे।
उहाँ सरवत, नस्ता -पानी, के बाद जखनी तिलक चढ़ाबे के मुहूरत(समय) होए तखनी तिलकधरुआ के बोलाहट होएत। अँगना में चउका पुरा के लड़िका के बैठे ला पीढ़ा , पूजा के समान एगो थरिआ चाहे परात मे सरिआ के रखा जाहे। देखबइअन लागी बैइठे ला सगरो से आसन मने दरी सफेदा इया कुर्सी बिछा देल जाहे। तिलकधरुअन अँगना में आवेला दुआर का लगलन कि गीत-नाध सुरू हो गेल। गीतो में केतनन तरह के भाव भरल यही हे। कुछ बड़ाई के कुछ उलहना अउ सियासत भी।
घंटा डेढ़ घंटा चले ओला टंट घंट के बाद दूनो के थारी-परात में रखल धान के मिला के दू भाग में बाँटल जाहे। एगो भाग बरपछिआ हो जाहे त दूसर लड़की पच्छ के ,जे लडिका के चुमावन के बाद कुल देवता भिर रखा जाहे। ई करमठ के एगो कानूनी अंग हे लगन- पत्री जे दूनो दने के पंडी जी कागज पर लाल रंग से लिख के अच्छत दूभी ,गोटा हरदी के साथे बाँध के रख दे हथ। एगो लगन- पत्री धाने साथे लड़की ओला के दे देल जाहे।
ई समारोह के रूप - रंग ,ठाट - बाट समाज के का कहल जाए । जात के रिवाज पर निरभर होबऽ हे। अगर ई समारोह बर्हामन किहाँ हे तो अँगना में दूनो पच्छ के बिदमान कोई बिसय पर वाद विवाद मने सासतरार्थ मे जुट जा हथन। आझ कल ई दिरिस न देखाई पड़े बाकि हमरा इयाद से तीस- चालिस बरिस पहिले होबऽ हल। एच ने नऽ जखनी भोजन ला अँगना मे बिजे होबऽ हल,भोजन परसैला पर संस्किरित के असलोक अरथ के साथे सुरू हो जा हल जेकरा में दूनो पच्छ के समधी के बडाइए बखानलजा हल। इ दुरभागे हे कि अखनी ई सब उपह रहल हे।
अगर बाबू लोग के तिलक हे तब बडबारगी ठाट ला जे बनूक रखले हथ, चाहे कोइ से माँग के आनले हथ उ ओकर हवाई फाएरिंग जरूर करतन ताकि ओकर अवाज से गाँव के लोग जान जाय कि तिलक चढ़ गेल।
अइसन समारोह के आयोजन में लछमीजी के बड़हन भूमिका रहऽ हे। औकात के अलावा सौख आउ देखाबे के इच्छा मिजाज के तेवर उसका देहे।
पहिले ई करमठ दू दिन के होबऽ हल बाकि आझ कल्ह साँझ तक कुटुम अएलन,रात मे तिलक चढ़ावा भेल, अगर नगीचे के कुटुम भेलन तो खिला- पिला के विदाई न त बिहान होके। कहूँ कहूँ खाली धान बाँट के दे देल जाहे। लेकिन बाकि बिआह घड़ी मड़वा में चाहे धूआपानी के समय तिलक के बिधान कर देल जाहे। ई सब बदलाव अपन अपन सुबिधा ला कर लेवल जाहे। सासतर गया पोथी पतरा के भाव न देल जाए।
ई तिलक में बर आउ कन्या के भाई के परधान काम हे देओतन के पूजा के बाद बर पूजन ला बिसनु सरूप मान के बर के पैर थारी में धोनवल जाहे। ,बस्तर दे के हाथ मे अच्छत चंन्दान नरिअर आउ दरब भरल कटोरा हाथ मे रख देल जा हे। फिन आउ जे जे सममान आएल रहल उ सब भी हाथ मे छुआ- छुआ के रख देल जाहे। धीर धीरे करम कांड सब समिटाएल जाइत हे कारन कि लोग के पास समय सुबिधा सौख के दलिदरी खैले जाइत हे।
हालाकि अइसन जे अबसर आबऽ हे ओकरा में समाजिक समरसता के साथे परसपर लाभो समाजवादिए रहऽ हे। डॉ रामकृष्ण
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