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दुःख से भी लड़ना सीखो

दुःख से भी लड़ना सीखो

दुःख में तुम अड़ना सीखो ,
दुःख से तुम लड़ना सीखो ,
भाग खड़ा होगा दुःख पीछे ,
दुःख देख तुम हंसना सीखो ।
सुबुद्धि जब हो जाता नष्ट ,
मति भी तब हो जाता भ्रष्ट,
तन मन को तब होता कष्ट ,
उदास होना तुम कभी न सीखो ।
दुःख देख तुम न हो हताश ,
दृढ़ संकल्प लें मन में आस ,
अपने कर्म पे करो विश्वास ,
जीवन में आहें ध भरना सीखो ।
लंगड़े संग लंगड़ा बन जाओ ,
लंगड़े को तुम संग खेलाओ ,
लंगड़े का भी हिम्मत बढाओ ,
विश्वास किसी का जीतना सीखो।
चलो मनाएं आज हम संडे ,
एक पैर दो सहारे डंडे ,
खेलों खेलाओ मिला कंधे ,
उसका भविष्य उज्ज्वल लिखो ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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