गिन सको तो खूबियाँ गिन
खामियाँ मत गिन।,
जंगलों में ,पहाड़ों में मस्त जीवन है, ़
प्रकृति के सामीप्य में भी व्यस्त यौवन है।
बुराई अच्छाइयाँ हैं समानांतर रेख
हौसले को देख बस मजबूरियाँ मत गिन।।
कौन चाहेगा कि कचरे मे छिपा बचपन
बीनता ही रहे किस्मत से करे अनबन।
उसे भी तो पाठशालाएँ बुलाती हैं,
उजाले में खुले आँखें और ता - ता धिन।।
हथौड़े की चोट से पत्थर मचलता है,
अस्थियों के गर्व से बादल पिघलता है।
मृत्तिका भी देव संस्कृत , आस्था रचती
बहुरते हैं समय से आलोक वाले दिन।।
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डॉ रामकृष्ण / संज्ञायन, विष्णु पद मार्ग
करसीली, गया
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