नहीं यथार्थ जीवन जिया है
संघर्ष भरी राहों पर अब तक मैं चलते चलते आया ।कभी अश्रु, स्मिति कभी, कभी वृथा अपमान सहा है।
नहीं यथार्थ जीवन जिया है ।।
सामर्थ्य नहीं फिर भी अकड़न,अहम भाव का किया है पोषण।
महत्वहीन जीवन जी जी कर नहीं जीवन का मूल्य समझा है ।
नहीं यथार्थ जीवन जिया है।।
क्रोध, क्षोभ का भाग हृदय में रख कर शक्ति व्यतीत किया है।
सहज स्वाभाविक सुख जीवन का कभी नहीं अनुभव किया है।
नहीं यथार्थ जीवन जिया है।।
क्या करूँ, क्या नहीं करूँ की मन: स्थिति ने जकड़ रखा है।
राह बता तू छोड़ न जाना तुम पर ही विश्वास रखा है।
नहीं सार्थक जीवन जिया है।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा,
डाक्टर विवेकानंद पथ, गोल बगीचा, गया, बिहार
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