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जीवन ने एक बुलाई बैठक

जीवन ने एक बुलाई बैठक

जीवन ने बुलाई एक बैठक ,
हर अंग हुए उसमें मौजूद ।
गिले शिकवे हुए अपने अपने ,
हर कोई बताए अपने वजूद ।।
दिया जीवन ने आदेश सबको ,
कुछ कहने का गिले शिकायत ।
अपने अपने शिकवे दूर करो ,
इसीलिए बैठी आज पंचायत ।।
पहली शिकायत हाथ की हुई ,
जगने से सोने तक करता काम ।
मैं ही सबको प्रणाम हूं करता ,
कोई नहीं करता मुझे प्रणाम ।।
सबसे नीचे जो है रहनेवाला ,
उसे सब कोई करते हैं प्रणाम ।
सारी शक्तियां मुझे हैं मिली ,
सम्मान से वंचित कौन इनाम ।।
बोला जीवन ने तब हाथ से ,
बात तो पूर्णतः सत्य कहते हो ।
नीचे वाला ही होता पूज्य है ,
तुम तो केवल ऊपर ही रहते हो ।।
नीचे वाला सदा रहता धरातल ,
इसीलिए वह सदा ही पूज्य है ।
वही तो तुम्हें कहीं है ले जाता ,
उसे छोड़ कहां कोई दूज्य है ।।
किंतु पूजा जाता नीचे वाला ,
आशीष तो ऊपरवाला देता है ।
नमन होता है पैर का भले ही ,
आशीष देना श्रेय हाथ लेता है ।।
मेरे लिए मिला तन और मन ,
परमात्मा अंश आत्मा बैठा दिया ।
मन हो गया इतना यह शातिर ,
पूरे तन पर ही है कब्जा किया ।।
आत्मा अनुसार मन है चलता ,
तब मैं भी बहुत खुश हो जाता हूं ।
आत्मा को छोड़ जब मन चलता ,
उदास हो स्वयं में खो जाता हूं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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