जन्नत की चाह
तुम जब देखती होतो दिलमें कुछ कुछ होता है।
फिर तुम्हें देखने का
मेरा भी मन करता है।
तुम्हें भी कुछ कुछ होता है
ये एहसास मुझे होता है।
इसलिए तो ये दिल
तुम्हारे लिए तड़पता है।।
कसम है मुझे उसकी
जिसने तुम्हें बनाया है।
फिर मेरे दिल को
तुम्हारा दिवाना बनाया है।
हो इतनी सुंदर जो तुम
इसलिए बहुत चाहने वाले है।
और तेरी एक झलक
देखने को व्याकुल रहते है।।
अलग है तेरी दुनियां
अलग है मेरी दुनियां।
मगर जन्नत की चाहत
तुम्हारी और हमारी है।
जिसे मोहब्बत के द्वारा
ही पाया जा सकता है।
इसलिए लागाओ दिल
किसी खूब सूरत परी से।।
बड़ी ही कठिन डगर है
समय की अपनी सीमा है।
पाया और खोना भी
जीवन का एक चक्र है।
जिसे मिल जाये मेहबूब
उसका जीवन धन्य है।
फिर जन्नत का आनंद
उसके जीवन में है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना"
मुंबई
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