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जनकवि बाबा नागार्जुन के जयंती पर....नमन हे महापुरुष

जनकवि बाबा नागार्जुन के जयंती पर....नमन हे महापुरुष

  • "जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं जन कवि हूं मैं साफ कहूंगा क्यों हकलाऊं": प्रदीप कुमार
दिव्य रश्मि संवाददाता  जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खबर |
ये पंक्तियां सही मायनों में जन कवि बाबा नागार्जुन की पहचान हैं। साफगोई और जन सरोकार के मुद्दों की मुखरता से तरफदारी उनकी विशेषता रही। अपने समय की हर महत्वपूर्ण घटनाओं पर प्रहार करती कवितायें लिखने वाले बाबा नागार्जुन एक ऐसी हरफनमौला शख्सियत थे, जिन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं और भाषाओं में लेखन के साथ-साथ जनान्दोलनों में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया और कुशासन के खिलाफ तनकर खड़े रहे।

रोजी-रोटी हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा,
कोई भी हो निश्चय ही वो कम्युनिष्ट कहलाएगा।

गरीबी, भूख, अत्याचार, कुशासन के खिलाफ जमकर बरसने वाले बाबा नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 को बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा गांव में हुआ था। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था, लेकिन हिंदी साहित्य में 'नागार्जुन' और मैथिली में 'यात्री' नाम से उन्होंने कविताएं लिखी।

सन् 1935 में श्रीलंका गये जहां उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की और बैद्यनाथ नाम त्यागकर "नागार्जुन" नाम ग्रहण किया।
जब वह बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर वापिस स्वदेश लौटे तो उनके जाति भाई ब्राह्मणों ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। लेकिन बाबा ने ऐसी बातों की कभी परवाह नहीं की। राहुल सांस्कृत्यायन के बाद हिन्दी के सबसे बडे़ घुमक्कड़ साहित्यकार होने का गौरव भी बाबा को ही प्राप्त है। बाबा की औपचारिक शिक्षा अधिक नहीं हो पायी। उन्होंने जो कुछ सीखा जीवन अनुभवों से सीखा और वही सब लिखा जो हिंदी कविता के लिए अमूल्य धरोहर हैं।

1975 में जब आपातकाल लगा, नागरिकों के मूल अधिकार जब्त होने लगे, लोगों को जेलों में ठूसा जाने लगा। अभिव्यक्तियां बुरी तरह कुचली जा रहीं थीं, लोगों को बोलने की भी आजादी नहीं थी ऐसे में बाबा जो अपने स्पष्टवादी छवि के लिए जाने जाते थे, निर्भीकतापूर्वक अपनी कविताओं के जरिए सवाल पूछे-

क्या हुआ आपको, क्या हुआ आपको सत्ता के नशे में भूल गई बाप को इन्दु जी इन्दु जी क्या हुआ आपको


अपनी एक महत्वपूर्ण कविता में देश के जिन पांच सेनानियों को जगह देते हैं, उसमें जेपी भी शामिल हैं। कविता में उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से जिनको शामिल किया उसमें नेहरू, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंन्द्र बोस, जिन्ना तो थे ही, साथ ही साथ जेपी भी शामिल हैं, ऐसा कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है।


पांच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखार गोली खाकर एक मर गया बाकि रह गये चार


चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन


तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो अलग हो गया उधर एक, 
 अब बाकी बच गए दो क्या हुआ आपको, क्या हुआ आपको --------
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