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टूटते सपने बेटियों के

टूटते सपने बेटियों के

नही होता था
भेदभाव
वैदिक काल मे
सनातन संस्कृति में
बेटा बेटी की शिक्षा में
रहन सहन
अथवा
खान पान में।
हाँ
यह भी सत्य है
कि
नर और नारी मे
कुछ तो भेद है
जो बनाया
स्वयं ईश्वर ने।
मातृत्व ममता
स्नेह का विस्तार
दया का भाव
तथा
और भी बहुत कुछ
वर्णन नहीं किया जा सकता
जिसका
चन्द शब्दों में।
और पुरूष
कठोर
दुरूह कार्य करने को तत्पर
परिवार की
सुरक्षा में अग्रसर
दायित्व वहन का भाव
बल शौर्य का प्रतीक।


समय का अंतराल
काल का चक्र
मुग़ल शासकों की कुदृष्टि
और
कहीं न कहीं
हमारी आपसी फूट
हम हारते गये
मुग़ल शासक
हम पर राज
मात्र राज नहीं
अपितु
खिलवाड़ करने लगे
हमारी अस्मिता से
संस्कार संस्कृति सभ्यता से
बहन बेटियाँ से।
हमारा विद्रोह तो जारी रहा
मगर
टूटा हुआ मन
असंगठित शक्ति
क्रूर आक्रान्ता
के सम्मुख
हमारे प्रयास विफल रहे।
वेब पुराण उपनिषद संहिता
सनातन की सीख
रोपती रही
संस्कारों के बीज
मर्यादा की खाद से
करती रही
पल्लवित पुष्पित
हमारी संतानों को।
विचारना होगा
एक हज़ार वर्ष का कालखंड
अंगेज़ी शासन की कुटिलता।
आज़ादी के बाद
संविधान का भेदभाव
बातें समानता की
पग पग पर
असमानता का अहसास
और हाँ
तब तलाशना
टूटते सपनों का सच
और
पिता की विवशता
बेटी पर अंकुश लगाने की।

डॉ अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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