Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

प्यासा कौवा चोंच खोलकर,देख रहा है नल

प्यासा कौवा चोंच खोलकर,देख रहा है नल

प्यासा कौवा चोंच खोलकर,देख रहा है नल।
गर्मी से सुखे अधरों को मिल अरे कुछ जल।।
पर धरती खुद है सुनी-सुनी,वह भी बड़ी विकल।
आसमान है सुना-सुना ये सुखा-सुखा बादल।।
प्यास लिए सब तड़प रहा है होकर अति निर्बल।
बिन पानी सब पानी-पानी है पानी नहीं रसातल।।
जल है जीवन जान समझ लो इसको मेरे बौवा।
नहीं तो हो जायेगा जीवन सचमुच एक दिन हौवा।।
तड़प-तड़प कर प्राण रहेगें ब्राह्मण हो या नौवा।
मुंह बाए सब रह जायेंगें जैसा की है ये कौवा।।
         ---: भारतका एक ब्राह्मण.
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ