*भारत के चार दिशाओं में है अवस्थित है चार धाम*
दिव्य रश्मि संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से।
भारत के उत्तर में (उत्तराखंड में) बद्रीनाथ, दक्षिण में (तमिलनाडू में) रामेश्वरम, पूर्व में (उड़ीसा में) जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में (गुजरात में) द्वारका अवस्थित है। इसप्रकार भारत के चार दिशाओं में चार धाम अवस्थित है और सबकी अपनी-अपनी महत्ता है।
प्राचीन समय से ये चार धाम, तीर्थ के रूप मे मान्य है और महिमा का प्रचार आद्यशंकराचार्यजी ने किया था।
भारत की उत्तर में अवस्थित बद्रीनाथ धाम की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने स्वयं की थी। इसलिए इस मन्दिर में नर-नारायण की पूजा होती है।
भारत के दक्षिण में अवस्थित, रामेश्वरम धाम की स्थापना प्रभु श्रीराम ने लंका जाते समय समुन्द्र के किनारे समुन्द्र पार करने के लिए भगवान शिवजी के लिंग स्वरूप को, प्रभु श्रीराम ने अपने हाथो से बना कर, उनकी पूजा उपासना कर शिवजी को प्रसन्न किया था।
भारत के पूर्व में अवस्थित पुरी धाम है जो वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है और भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर में तीन मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा है। ये तीर्थ पुराणों में बताई गई 7 पवित्र पुरियों में एक है। यहां हर साल रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
भारत के पश्चिम में अवस्थित द्वारका है गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा हुआ है। यह हिन्दुओं के चारधाम में से एक है। यह श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का स्थल है और गुजरात की सर्वप्रथम राजधानी माना जाता है।
भारत के इन चार दिशाओं में अवस्थित चार धामों में से, जगन्नाथ पुरी के प्रति लोगों की आस्था अत्यधिक प्रतीत होता है। यहां रथ यात्रा का शुभारंभ प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल से जगन्नाथ पुरी में मूर्तियों का निर्माण विश्वकर्मा जी करते थे। एक समय की बात है कि विश्वकर्मा जी जब भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और सुभद्रा जी का, विग्रह का निर्माण कर रहे थे तो उन्होंने तत्कालीन राजा से शर्त रखी थी कि जब तक विग्रहों का निमार्ण पुरा नही हो जाता है, तब तक उनके कमरे में कोई प्रवेश नही करेगा। राजा ने इस शर्त को नही मानते हुए उनके कमरे में प्रवेश कर गए थे।वैसी स्थिति में विग्रह जितना तैयार हुआ था, काम वहीं रुक गया। ऐसी स्थिति में भगवान जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी का विग्रह में हाथ, पैर और पंजे नही बन सके।
रथ यात्रा के लिए निर्माण किए जाने वाले रथ में किसी प्रकार की कील या नुकीली चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जबकि रथ में 16 पहिया होता है और भगवान जगन्नाथ जी के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट होता है, वहीं बलराम जी के रथ की ऊंचाई 45 फीट और सुभद्रा जी के रथ का ऊंचाई 44.6 फीट होता है। इस रथ के निर्माण के लिए लकड़ियों का संग्रह वसंत पंचमी के दिन और रथ निर्माण का कार्य अक्षय तृतीय से, शुरु होता है।
जगन्नाथ पुरी को लोग पुरुषोत्तम पूरी, शंख क्षेत्र और श्री क्षेत्र के नाम से भी जानते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि यह क्षेत्र भगवान जगन्नाथ की लीला भूमि है।
रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है, जिसे तालध्वज के नाम से संबोधित करते हैं और यह लाल और हरे रंग का होता है। इसके ठीक पीछे भगवान की बहन सुभद्रा जी का रथ रहता है जिसे दर्पदलन नाम से जाना जाता है। इसका काला और नीला रंग रहता है और इसके ठीक पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ रहता है जिसे लोग गरुड़ध्वज नाम से संबोधित करते हैं। इस रथ पर हनुमान जी और नृसिंह भगवान जी के प्रतीक चिन्ह अंकित रहता है। इसका लाल और पीला रंग रहता है।
कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी के रथ को एक मोटी रस्सी से लोग खीच कर तीन किलो मीटर तक उनके मौसी के घर गुंडीचा मंदिर तक ले जाते हैं।
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