मोह माया के पाश से
मुक्त होना हीअध्यात्म की पराकाष्ठा है।
लेकिन हम बंधे रहना चाहते हैं
उस मीठे अहसास से।
और
हों भी क्यों ना?
हम कौन हैं
देव दानव किन्नर
ऋषि मुनि
अथवा
मानव?
विचारणा कभी!
हाँ
मैं चाहता हूँ
बस मानव बने रहना
दुःख सुख
जीवन मरण
प्यार नफ़रत
अपने परायों की
खट्टी मीठी अनुभूतियों के साथ।
कहाँ सुलभ है
ईश्वर को
देवताओं को
ऋषि मुन्नियों को
यह मानवीय देह,
यह संवेदनायें
अहसास
प्यार समर्पण।
फिर
पाश में बंधन
अनुभव करना
सुखद लगता है
बस नज़रिया बदलना
और आगे बढ़ना।
अनन्त कीर्ति वर्द्धन
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