रीढ विहीन भी हो जाओगे, फिर भी कुछ तो रूठेंगे,
मुँह बन्द और जेब खुली हो, फिर भी कुछ तो रूठेंगे।
हाँ में हाँ करते जाओ, निज ख़ुशियों को तजते जाओ,
रिश्तों में मर्यादाओं की बातें, फिर भी कुछ तो रूठेंगे।
कब तक सबकी मान मुनव्वल, कैसे सबको समझाएँ,
सही मार्ग पर चलने वाले, कब तक स्वाभिमान भुलाएँ?
रिश्तों में गुणा भाग, जोड़ घटा सब कुछ ही होता है,
दो पक्षों का प्रतिफल होता, कैसे यह सत्य बिसराएँ?
अ कीर्ति वर्द्धन
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