दिव्य रश्मि संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा
किसी भी एक फिल्म को बनाने में, महीनों वर्षों लगते हैं और कई लोग लगे रहते हैं। फिल्म के एक-एक सीन, एक-एक फ्रेम वर्क, एक-एक एक्स्प्रेशन, अलग-अलग लोगों की नजरों के सामने से गुजरता है। प्रत्येक चीज को ध्यान से देखा परखा जाता है। फिल्म तैयार होने पर सेंसर वोर्ड से उसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने के लिए प्रमाण पत्र निर्गत किया जाता है। “आदिपुरुष” फिल्म के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा।
आदिपुरुष कहानी त्रेता युग की है। फिल्म मेकर्स ने इस कहानी को रामायण पर आधारित कर रामायण और उसके पात्रों को काल्पनिक आधार बनाने का प्रयास किया गया है। आश्चर्य तो इस बात की है की तैयार किये गये इस फिल्म को सेंसर वोर्ड कैसे और किस आधार पर इसे प्रदर्शित करने के लिए प्रमाण पत्र निर्गत किया है। फिर स्क्रिप्ट राइटर कहाँ से किस आधार पर रामायण की कहानी लिखी। भेष भूषा, सेट तैयार करने वालों की सोच इतनी घटिया कहाँ से आई। कहीं ऐसा तो नहीं हिन्दू विरोधी मानसिकता वाले लोग इस फिल्म में शामिल तो नहीं?
फिल्म देखने से एक बात तो स्पष्ट है कि इस फिल्म का प्रदर्शन विदेशों में ज्यादा से ज्यादा कर, धन कमाने का उद्देश्य रहा होगा। ऐसे भी चर्चा में तो हैं ही कि इस फिल्म ने एक दिन में 140 करोड़ से अधिक की कमाई कर चुकी है। फिल्म से जुड़े सभी लोग पुरुषोत्तम श्रीराम की छवि को खराब किया है यह दोषी तो हैं ही, लेकिन इससे बड़ा दोषी सेंसर वोर्ड के वे सभी सदस्य हैं जिन्होंने इसे प्रदर्शित करने के लिए पास किया है।
फिल्म 'आदिपुरुष' को हास्यास्पद बनाने में इसके डायलॉग ने तो वाट ही लगा दी है : -
* जब बात सही है तो फर्क नहीं पड़ता किसने कही है
* राम अवतारी है, पर एक दशानन दस राघव पर भारी है
* आप काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं
* तेरी बुआ का बगीचा नहीं है
मरेगा बेटे
* जली न? और भी जलेगी। कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग तेरे बाप का, जलेगी भी तेरे बाप की
* बोल दिया जो हमारी बहनों को हाथ लगाएँगे, हम उनकी लंका लगाएँगे
* मैं इक्ष्वाकु वंश का राघव, आपकी छाती में ब्रह्मास्त्र गाड़ने को विवश हूँ
* रघुपति राघव राजा राम बोल, वरना आज खड़ा है, कल लेटा हुआ मिलेगा
* चुपचाप अपना तमाशा समेट और निकल अपने बंदरों को ले कर। मेरे एक सपोले ने तेरे शेषनाग को लम्बा कर दिया।
* सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं
* गाड़ दो भगवा ध्वज, भारत की बेटी।
किस युग के हैं ये डायलॉग? ये किस हिसाब के डायलॉग हैं? रामायणमें तो ऐसा नहीं हैं। बजरंग, रावण और इंद्रजीत जैसे किरदारों को ऐसे डायलॉग बोलते सुनना बेहद अजीब लगता है।
फिल्म शुरू होने से पहले बताया जाता है कि वाल्मीकि रामायण का स्क्रीन रूपांतरण बनाये हैं। रामायण को अपने हिसाब से अलग-अलग लोगों ने लिखा है। हम अपने अलग नजरिए से इसे दिखा रहे हैं…..।
फिल्म में इंद्रजीत, बजरंग की पूंछ में आग लगाने के बाद कहते हैं- 'जली ना? अब और जलेगी। बेचारा जिसकी जलती है वही जानता है।' इसके जवाब में बजरंग कहते हैं, 'कपड़ा तेरे बाप का। तेल तेरे बाप का। आग भी तेरे बाप की, और जलेगी भी तेरे बाप की।'
अशोक वाटिका में सैनिक जानकी से बात करते बजरंग को देख लेता है और वह बजरंग से कहता है- 'ए, तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया। मरेगा बेटे आज तू अपनी जान से हाथ धोएगा।' अंगद रावण को ललकारते हुए कहता हैं, 'रघुपति राघव राजा राम बोल और अपनी जान बचा ले, वरना आज खड़ा है कल लेटा हुआ मिलेगा।' लक्ष्मण को राम शेष (लक्ष्मण) कह कर संबोधित करता है। शेष (लक्ष्मण) पर वार करने के बाद इंद्रजीत कहता है, 'मेरे एक सपोले ने तुम्हारे इस शेष नाग को लंबा कर दिया, अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है।' रावण से विभीषण कहता है, 'भैया आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं।' रावण, राघव के लिए कहता है, 'अयोध्या में तो वो रहता नहीं, रहता वो जंगल में है और जंगल का राजा तो शेर होता है, तो वो राजा कहां का रे।'
फिल्म मेकर्स का माने तो इस फिल्म को रामायण की महागाथा के आधार पर बनाया गया है। इसलिए फिल्म की कहानी में राघव और जानकी के प्रेम दिखाया गया है तो वहीं, रावण की मायावी शक्ति और अहंकार को भी दिखाया गया है।
फिल्म बनाने में करोड़ों रुपये का खर्च किया गया है जो सुर्खियों में है। लेकिन किसी भी दर्शक के गले से नहीं उतर पा रही है, इस फिल्म के सीन, पात्र, डायलॉग और कहानी।
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