जीने की वजह हो तुम
यह तन मन धन है अर्पितलहू का कतरा कतरा समर्पित
दिन रात और सुबह हो तुम
मेरी जीने की वजह हो तुम।
तेरी किलकारी सुनकर ही,
जिंदगी का सफर तय की।
खुशियों से भरे पल हो तुम,
मेरे जीने की वजह हो तुम।
तेरी तोतली बोली की मिठास ,
हिर्दय की फुलवारी महकाए।
हंसती मुस्कुराती कमल हो तुम,
मेरे जीने की वजह हो तुम।
आने ना दूंगी कोई मुसीबत ,
परछाई बनकर रहती हूं मैं ।
मेरे तो सुंदर गजल हो तुम ,
मेरे जीने की वजह हो तुम।
डॉ.इन्दु कुमारी
मधेपुरा बिहार
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