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उपहार

उपहार

लेखक नित्यानंद शुक्ल
ऐसा आदमी भला कोई होता है..ऐं.. कोई ससुराल में मिला धन छोड़ता है क्या? अरे, वह दो बीघा खेत और मकान के आधे हिस्से की उत्तराधिकारिणी तुम्हारी एकमात्र पत्नी ही तो है!! प्रशांत सर झुकाए अपनें पिता के सामने खड़ा था और उसके पिता उसे उसके कर्तब्य और लाभ के बारे में बताए जा रहे थे।।

पिताजी नें पुनः डांटा और हिदायत देते हुए कहा कि कल ही ससुराल चले जाओ और अपनें ससुर के नाम के हिस्से की जमीन और मकान को अपनी पत्नी के नाम नामांतरण का आवेदन दे दो। ऐसा न हो कि उस जमीन पर तुम्हारे ससुर का छोटा भाई अपना नाम चढ़वा ले .. ताकते रह जाओगे...मुकदमा लड़ना पड़ेगा ! समझे।।

झुके हुए सर को प्रशांत नें उठाया...पिताजी के तरफ देखा फिर धीरे धीरे हिम्मत करके बोलने लगा!! बाबूजी , हमारे पास तो 8 बीघे जमीन हैं। मैं खुद अध्यापक हूँ। अच्छी सी सैलरी मिलती है , मगर बाबूजी स्व0 ससुर जी के भाई बहुत गरीब है!! किसान हैं!! तीन बेटियां हैं । पिछले साल स्व0 ससुर जी के भाई ने बड़ी बेटी की शादी खेत बेचकर की और अभी उनकी दो जवान बेटियां तथा एक छोटा बेटा है। बाबूजी जब भी मैं ससुराल जाता हूँ तो मुझे जीजाजी कहकर बैठाने, खिलाने, दुलारने वाली मेरी वही चचेरी सालियाँ ही होती हैं। वो मासूम छोटा साला भी कितना प्यारा है।

तो !! उससे का हुआ? नेवासा पाने के लिए ही तो तुम्हरी शादी हमने की थी!! अरे, उसको बेच कै शहर में जमीन लेकर मकान बनवाई कै कुवाटर पर दै के पैसा कमाएंगे !! बुरबक कहीं कै...।।

बाबूजी, हमरा दिल नहीं मान रहा है। हमारे ससुर सास मरे हैं, लेकिन ससुर के भाई जिंदा हैं...मैं या आप जब वहां जाते हैं तो कितनी इज्जत होती है!!!! बाबूजी आपका समाधियांन समाप्त हो जाएगा। एक प्रमुख रिश्तेदारी हमेशा के लिए खतम हो जाएगी। मैं खुद कमाकर जमीन ले लूंगा मगर बाबूजी वो घर जमीन उन्हीं के भाई को मिलना चाहिए। ये हमारे तरफ से उनके लिए खुशियों का उपहार होगा। बाबूजी , दुनिया कुछ भी कहे!! ईश्वर हमारे ऊपर जरूर खुश हो जाएंगे।

पिताजी चकित थे, !! इस जमाने के बिल्कुल उलट सोच के बेटे की बातों को सुनकर!!

मगर वो जमीन तो बहु की है!! बहू मानेगी ??

हाँ पिताजी आपकी बहू भी यही चाहती है। आपकी बहु नहीं चाहती कि मायका छूटे !! प्रशांत नें पिताजी को बताया।

पिताजी खड़े हो गए। पिताजी के मन में चल रहा अंतर्द्वंद समाप्त हो गया।

पिताजी नें अपनें महान बेटे के तरफ देखा और बोले!! कार बाहर निकालो। बहु बच्चों को बैठाओ !! हमसब अभी इसी वक्त हमारे समाधियांन चलेंगे। मेरे अंदर लालच समाया हुआ था लेकिन अब लालच के बादल छट गए हैं। हम स्वयं स्व0 समधी जी के भाई के पास जाकर मिलना चाहते हैं।

कार फर्राटे भरती हुई प्रशांत के ससुराल चली जा रही थी। प्रशांत का परिवार बेहद खुश था। कार ससुराल पहुंच गई।

प्रसांत की सुंदर सुंदर सालियाँ,...मासूम सुंदर सा साला , प्रसांत की सास, सब खुश हो गए। दौड़कर कार के पास गए। सालियाँ और साला पैर छू छू कर सबको प्रणाम किये। सालियाँ ने जीजाजी का हाथ पकड़ लिया।

मगर, प्रशांत के स्व0 ससुर के भाई दिखाई नहीं दे रहे थे। भाई के मृत्यु के उपरांत वे चिंतित रहने लगे ..जिससे कमजोर होकर ऐसे बीमार पड़े थे कि बिस्तर से उठना मुश्किल था।

प्रसांत के पिता जी नें पूछा!! समधी जी कहाँ हैं?

बाबूजी!! पिताजी बीमार है!! कहकर प्रसांत की सालियाँ रोने लगीं...

एक शाक सा लगा प्रसांत के बाबूजी को...वो दौडपडे समधी जी के पास...समधी जी अर्धचेतन अवस्था में सोए हुए थे...प्रसांत के पिताजी बुलाये!! समधी जी!! समधी जी...समधी जी की आंख थोड़ी सी खुली ...सोए सोए दोनों हाथ जोड़ लिए

प्रसांत के पिताजी पुनः चिल्लाए!! समधी जी !! आज मैं एक उपहार लेकर आया हूँ...यह देखिए!! एक नोटरी स्टाम्प पेपर उन्होंने समधी जी के तरफ बढ़ाया और कहा !! आपकी जमीन हमें नहीं चाहिए...!! ये देखिए आपकी भतीजी खड़ी है..उस नोटरी पत्र पर उसका साइन है..!!

भतीजी अपनें चाचा को पकड़कर रोने लगी..उठिए चाचा...आपने अपनी भतीजी की शादी संभ्रांत घर में की है...कोई कमी नहीं है...आपके जमीन को मैं क्यो लुंगी..

बीमार चाचा जी के अंदर पता नहीं कहाँ से शक्ति का संचार हो गया। बिस्तर से धीरे धीरे उठकर बैठ गए...फिर खड़े हो गए...उनकी आंखों में प्रेम के आंसू थे ...वे एकटक समधी जी की तरफ देख रहे थे...फिर दामाद के तरफ देखकर हाथ जोड़ लिए और समधी जी के पैर पर गिर गए....

प्रसांत के पिताजी नें समधी जी को गले लगा लिया। दोनों के आंखों में खुशी के आँसू थे ।

प्रसांत के ससुराल का माहौल बेहद खुशनुमा हो गया। पकौड़ियाँ छान छान कर सालियाँ लाने लगीं। स्पेशल चाय बन रहा था।

प्रसांत ने ससुराल जैसे स्वर्ग को सदा के लिए सुरछित कर लिया।

स्वरचित लेखक नित्यानंद शुक्ल,कुशीनगर, उत्तरप्रदेश 
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