डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एम्.एम्. कलबुर्गी एवं गौरी लंकेश, इन नास्तिकवादियों तथा शहरी नक्सलवाद से संबंधितों की हत्याओं की छानबीन में राजनीति शुरू है । ठोस प्रमाण न होते हुए भी हिन्दुत्वनिष्ठों को आरोपी बनाकर कारागृह में डाल दिया गया । उनपर आरोपपत्र भी प्रविष्ट हुए । तत्पश्चात जांचयंत्रणा ने ही हत्या के पीछे बंदी बनाए गए आरोपियों के स्थान पर नए आरोपी होने का दावा किया । कुल मिलाकर इन सभी प्रकरणों में सतत आरोपी बदलना, शस्त्र बदलना, जैसी गैरकानूनी बातें हुईं । गौरी लंकेश की हत्या करनेवाले ने हेल्मेट पहनकर रात के अंधेरे में हत्या की थी, तब भी संशयितों के अनेक छायाचित्र खींचे गए । अब प्रश्न यह है कि पुलिस को हेल्मेट के अंदर का चेहरा कैसे दिखाई दिया ? डॉ. दाभोलकर अभियोग में टुकडे-टुकडे कर समुद्र में फेंकी गई पिस्तौल ढूंढ निकालने का दावा किया गया; परंतु समुद्र से वह उन्हें अखंड स्थिति में कैसे मिली ! गहरे समुद्र में उस पिस्तौल को किसने जोडा ? कुल मिलाकर यह हत्या किसने और क्यों की, इसकी जांच यंत्रणाओं ने कभी भी प्रामाणिकता से छानबीन की ही नहीं । केवल यही देखा गया कि इन ैहत्याओं का राजकीय लाभ के लिए कैसे उपयोग होगा, ऐसा प्रतिपादन ‘द रैशनलिस्ट मर्डर्स’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. अमित थडानी ने किया । वे ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’में ‘द रैशनलिस्ट मर्डर्स’ पुस्तक के प्रकाशन के समय बोल रहे थे । इस अवसर पर व्यासपीठ पर हिन्दू विधिज्ञ परिषद के संस्थापक सदस्य अधिवक्ता (पू.) सुरेश कुलकर्णी, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर एवं अधिवक्ता पी. कृष्णमूर्ती भी उपस्थित थे ।
इस प्रसंग में अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर बोले, ‘‘नास्तिकतावादियों की हत्या के उपरांत हिन्दुत्वनिष्ठों को आतंकवादी ठहराया जाता है; परंतु साम्यवादियों ने कितने लोगों को मारा है ? यह प्रश्न क्यों नहीं पूछा जाता ? साम्यवादियों ने जगभर में 10 करोड लोगों की हत्या की हैं और नक्सलवादियों ने 14 हजार से भी अधिक हत्याएं की हैं । नक्सलवादी ही साम्यवादी हैं और साम्यवादी ही नक्सलवादी हैं; परंतु यह कोई बताता नहीं । यही वैचारिक आतंकवाद है । इसलिए वैचारिक आतंकवाद के विरोध में प्रत्येक को प्रश्न पूछने का साहस दिखाना चाहिए !’’ अधिवक्ता पी. कृष्णमूर्ती बोले, ‘‘मैं ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ (पी.एफ्.आइ.) नामक जिहादी संगठन के विरोध में अभियोग लढ रहा हूं । इसलिए मुझे धमकियां दी गईं । इतना ही नहीं तो मुझ पर प्राणघातक आक्रमण भी हुए; परंतु श्रीकृष्ण का स्मरण करने से उससे मेरी रक्षा हुई । इसलिए समाज के हिन्दुत्वनिष्ठ अधिवक्ताओं को जब भी समय मिले, तब नामस्मरण करना चाहिए ।’’ इस प्रसंग में अधिवक्ता (पू.) हरिशंकर जैन ने धर्म के लिए बलिदान देनेवालों को भुला न देने का आवाहन किया ।
इस अधिवेशन का सीधा प्रक्षेपण हिन्दू जनजागृति समिति के जालस्थल HinduJagruti.org द्वारा, इसके साथ ही ‘HinduJagruti’ नामक ‘यु-ट्यूब’ चैनल द्वारा भी किया जा रहा है ।
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