मेरी आवाज़....
आवाज़ जो मुल्क की बेहतरी के लिए है,कोई दबा नहीं सकता।
दीवार जो मेरी आवाज़ रोक सके
कोई बना नहीं सकता।
जब जब चाहा जालिमों ऩे, आवाज़ दबी हो
किस्सा कोई बता नहीं सकता।
क़त्ल कर सकते हो जिस्म का ए कातिल
विचारों को कोई दबा नहीं सकता।
खिलेगा कोई फूल उपवन मे देखना उसको
खुशबु को कोई चुरा नहीं सकता।
कहाँ से पाला भ्रम अमर होने का,सियासतदानो,
मौत से कोई पार पा नहीं सकता।
दबाओ के कब तलक मेरी आवाज़ दरिंदों
हवाओं को कोई बाँध नहीं सकता।
सजा कर एक परिंदा पिंजरें मे जाने क्या समझे,
परिंदों से गगन खली रह नहीं सकता।
उड़ेगा बाज़ जब आसमाँ के सीने पर
मौत किसकी लिखी बता नहीं सकता।
लिखा तकदीर मे तेरी क्या,तू क्या जाने
जो लिखा बदलवा नहीं सकता।
ध्यान रख कोई और है दुनिया चलाने वाला,
बिना मर्जी के हाथ हिला नहीं सकता।
समझते थे कुछ लोग खुद को, खुदा बन गए,
कहाँ खो गए बता नहीं सकता।
ना कर गुरुर अपनी ताकत पर नादान,
साँसों की गिनती गिना नहीं सकता।
अ कीर्ति वर्धन
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