दिव्य रश्मि संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खबर।
भारतीय संस्कृति में किसी व्यक्ति के लिए अपने जीवन काल में, नए घर का निर्माण और उसमें प्रवेश करने को बहुत ही शुभ और दुर्लभ क्षण माना जाता है और जब देश के जीवनकाल में इस तरह का समय आता है तो वह असाधारण क्षण होता है। लेकिन हमारे देश राजनीतिक पार्टियों ने नए संसद भवन शिलान्यास पर कोई आपत्ति नहीं किया लेकिन उद्घाटन पर ऐसा आपत्ति किया, जो देश को शर्मसार कर दिया है। ऐसा लगता है राजनीतिक पार्टियाँ देश के प्रधान मंत्री का विरोध करते करते देश का विरोध करने लगा है। नए संसद भवन का निर्माण करने की प्रक्रिया का शुरुआत कांग्रेस पार्टी की शासन काल में शुरुआत हुई थी, लेकिन उसे शिलान्यास कर उद्घाटन करने का सौभाग्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिला।
नए संसद भवन के उदघाटन समारोह का बहिष्कार करने वालों में देश के राजनीतिक पार्टियाँ 81 सांसद बाली कांग्रेस, 34 सांसद वाली द्रमुक, 7 सांसद वाली शिव सेना-यूबीटी, 11 सांसद वाली आम आदमी पार्टी, 6 सांसद वाली समाजवादी पार्टी, 4 सांसद वाली भाकपा, 2 सांसद वाली झामुमो, 2 सांसद वाली केरल कांग्रेस -मणि, एक सांसद वाली विदुथलाई चिरुथिगल काची, एक सांसद वाली राष्ट्रीय लोक दल, एक सांसद वाली आरएसपी, एक सांसद वाली एमडीएमके, 35 सांसद वाली तृणमूल कांग्रेस, 21 सांसद वाली जनता दल (यूनाइटेड), 9 सांसद वाली राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, 8 सांसद वाली सीपीआई-एम, 6 सांसद वाली राजद, 4 सांसद वाली आईयूएमएल, 3 सांसद वाली नेशनल कान्फ्रेंस, और 2 सांसद वाली एआईएमआईएम, कुल 20 पार्टियाँ शामिल थी। इसतरह के सोंच रखने वाली पार्टियों को देश हित में किए गए कार्य कैसे कहा जा सकता है।
जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एनडीए में शामिल नहीं रहने के बावजूद गैर एनडीए पार्टियाँ लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास), बीजू जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआरसीपी, कुल 5 पार्टियाँ नए संसद भवन के उद्घाटन में शामिल थे।
ऐसा लगता है की देश की राजनीति पार्टियाँ भाजपा सरकार के कार्यों का विरोध करने के सिवाय कोई काम नहीं करती है। जब केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक किया तो इसका सबूत माँगने लगा, जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाया तो इसका विरोध करते हुए इसे पुनः लागू करने का वादा करने लगी, तीन तलाक हटाया तो इसका भी विरोध करने लगी, राफेल खरीदा तो विरोध करने लगी, इतना ही नहीं देश के प्रधान मंत्री को चौंकीदार चोर कहते हुए संबोधित करने लगा। इस तरह का विरोध स्वच्छ विपक्ष का पहचान नहीं हो सकता है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के शासन काल में विपक्ष के नेता रहने के बाद भी विदेशों में देश के नेतृत्व के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा गया था। लेकिन आज के विपक्ष को भेजना तो दूर है बल्कि विपक्ष के नेता विदेशों में जाकर देश की छवि खराब करने और देश को बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
अबप्रश्न उठता है कि अगर देश की जनता ऐसी विपक्षी पार्टियों को सत्ता सौपती है देश का कौन सी छवि उभरेगी यह प्रश्न सोचनीय है। जहां तक महंगाई, वेरोजगारी…. आदि का प्रश्न है तो यह सोचनीय बिषय है की जब देश आजाद हुआ था और 70 वर्ष में क्या रेट सामग्रियों का नहीं बढ़ा है? वेरोजगारी नहीं रही है? जो पार्टी 70 वर्ष में महंगाई और वेरोजगारी खतम नहीं कर सका, तो क्या उसे इसका विरोध करने का हक है? दूसरे पर आरोप लगाना उचित है? आगामी लोक सभा चुनाव अगले वर्ष होना है। अब देखना है कि देश की जनता अपने मताधिकार का उपयोग कर देश का बागडोर किसे सौपती है। देश की छवि बनाने वालों को या देश के नए संसद भवन का बहिष्कार करने वालों को। यह सब जनता की सोंच पर निर्भर करता है।
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