शर्मीली आंखें
मस्तिष्क के बाद बेहद कर्मठ ,काम करती हैं शर्मीली आंखें ।
नजरें चुरातीं कभी है शर्माती ,
क्रोध दिखाती लचीली आंखें ।।
आंखें बताती पहचान कराती ,
हमें है पढ़ाती ये नशीली आंखें ।
प्यार पढ़ाती मोहब्बत सिखाती ,
नजरें मिलाती ये रसीली आंखें ।।
नजरें उठाती वह नजरें झुकाती ,
आंख चमकाती पथरीली आंखें ।
प्यार बरसाती वह आग बरसाती ,
कभी नीली पीली प्यारी आंखें ।।
निखारे चेहरा व बिगाड़े चेहरा ,
कभी धूल मिलाती कारी आंखें ।
दिल तड़पाए वह दिल तरसाए ,
सुन्दर सुरीली कजरारी आंखें ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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