विपक्षी राजनीति - पटना बैठक
- मनोज कुमार मिश्र
पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक हुई। दावा था कि इसमे 21 विपक्षी दल सम्मिलित होने और मोदी को कैसे हटाएं इस पर चर्चा होगी। गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दे विभिन्न पार्टियों के प्रवक्ताओं के जिम्मे लगा दिया गया। विभिन्न पार्टियों के राजा सिर्फ मोदी हटाओ की चर्चा करेंगे। पर यहीं थोड़ी गड़बड़ हो गयी। एक अपने को पढ़ा लिखा मानने वाले सरकार अड़ गए कि पहले अध्यादेश पर आश्वासन हो फिर आगे बात करेंगे। आपने पहचान तो लिया ही होगा भारतीय राजनीति के सबसे बड़े गिरगिट अरविंद केजरीवाल ने इस मौके को अपने लिए भुनाना चाहा। पर इस बार उनकी दाल नहीं गली। कांग्रेस ने साफ मना कर दिया हालांकि मल्लिकार्जुन खड़गे हाँ में भी थे और ना में भी, पर राहुल की सख्त "ना" है। राजनीति का क ख ग अब वे भी पहचानने लगे हैं। जानते हैं कि जहां जहां भी ये पार्टी जाती है कांग्रेस का ही सफाया करती है चाहे दिल्ली हो पंजाब हो या गुजरात। आम आदमी पार्टी का उदय ही कांग्रेस की कब्र पर हो रहा है।
पटना बैठक की विशेषता यह रही कि 21 की बजाय 14 दल ही इसमे शामिल हुए। जो दल शामिल हुए वे सभी अपना जन्म कांग्रेस विरोध के मूल में पाते हैं और सभी के नेता या उनके पूर्वज इमरजेंसी में जेल में थे पर अब विडंबना देखिए लालू प्रसाद राहुल के साथ ठिठोली कर रहे हैं। नीतीश बाबू, जिनके द्वारा दायर मुकदमे के चलते 5 बार अदालत द्वारा अभियुक्त सिद्ध हो चुके हैं, अभी लालू प्रसाद के खासमखास बने हुए हैं। ममता बनर्जी, जिन्होंने कांग्रेस से विरोध कर अपनी राजनीति चमकाई, अब कांग्रेस की ही गोद में खेलने को तैयार हैं। पवार और उद्धव की जोड़ी एक बार फिर से कांग्रेस के कंधों पर चढ़ने को आतुर हैं पर सबकी शर्त बस इतनी सी है कि मोदी हटना चाहिए। इनसे अगर प्रश्न किये जायें तो ये सभी गरीबों की बात करने लगते हैं पर विडंबना देखिए ये सभी अपने अपने चार्टर्ड प्लेन लेकर इस बैठक में शामिल होने आए थे। यानी प्रश्न मोदी को हटाने का नहीं वरन लूट से अपनी जेब भरने का है। मोदी ही इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। मजे की बात ये भी है कि ये सब एक ही प्लेन से भी नहीं आये सब आपने आपने जेट लाये जो कॉर्पोरेट हाउसेस के थे। वही कॉर्पोरेट हाउस जिनके विरोध में ये झंडे तानते हैं।स्टालिन जो हिंदी भाषा और हिंदी भाषी लोगों को फूटी आंख देखना नहीं चाहते, अभी हाल में ही बिहारी मजदूरों पर अपने प्रदेश में हमला करवा रहे थे और जिनके राज्य ने मनीष पांडे नामक बिहार के पत्रकार पर रासुका लगा रखा है वे भी इस मीटिंग में थे। मजाल है कि किसी लालू, किसी तेजस्वी, किसी नीतीश या किसी ललन सिंह के मुंह से एक बोल भी फूटा हो।
नीतीश बाबू की एक चीज की सराहना करनी होगी उनका मीडिया मैनेजमेंट इतना तगड़ा था कि किसी भी पत्र पत्रिका ने इन कॉर्पोरेट या राज्य के विमानों पर सवाल नहीं खड़े किए।
अखिलेश यादव जो लालू के रिश्तेदार भी हैं वे भी अपने लाव लश्कर के साथ बैठक में मौजूद थे। दरअसल मोदी ने इन परिवार वाड़ी पार्टियों की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया है जिससे ये तिलमिलाई हुई हैं। जिनका मूल उद्देश्य ही भारत के खजाने को लूटना है और जो इसमें अभी तक बाधक बन रहा है वो मोदी सरकार है। एक पर एक मुकदमे और जांच चल रही है सभी परेशान हैं। मुकदमों में दोष के साक्ष्य हैं अतः कई नेता जेल में भी है।
अब कांग्रेस की स्थिति इस बैठक के बाद सांप छछूंदर जैसी है। न उससे निगलते बन रहा है न उगलते। बिहार में कांग्रेस के पाले में 10 से ज्यादा सीट नहीं आएगी, इंसमे से जीतेंगे कितने ये भविष्य के गर्भ में है। ममता बनर्जी जिनका अभी सार ध्यान अपने उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी और उसकी पत्नी को कोयला घोटाले से बचने में लगा हुआ है, का कहना है कि कांग्रेस को बंगाल में चुनाव नहीं लड़ना चाहिए। यही मांग आम आदमी पार्टी की है कि कांग्रेस दिल्ली पंजाब छोड़ दे। अखिलेश का अपना अभियान चल रहा है कि उत्तरप्रदेश में 80 कई 80 सीट जीतेंगे। कांग्रेस वहां भी खाली हाथ रहेगी। लब्बोलुबाब ये है कि कांग्रेस 1857 के बहादुर शाह जफर जैसी स्थिति में है जिसे लोग एकजुट होने का माध्यम तो बना रहे हैं पर जीत के बाद उसकी औकात दिखाने में पीछे नहीं रहेंगे। देखना यह है कि क्या कांग्रेस इस चक्रव्यूह में फसेंगी या मोदी को हराने के लिए दधीचि सरीखी बन कर अपना अस्तित्व मिटाएगी।
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