स्वयं में संपूर्ण काव्य थे पं वैद्यनाथ मिश्र 'नागार्जुन':-डा अनिल सुलभ
- डा पूनम आनंद की कहानियों में लोक-जीवन की सरल अभिव्यक्ति /
- जयंती पर साहित्य सम्मेलन में भोजपुरी कहानी संग्रह 'एक से एकइस' का हुआ लोकार्पण, हुई लघु कथा-गोष्ठी ।
पटना, ३० जून। नागार्जुन एक जीवंत कवि थे। स्वयं में ही एक संपूर्ण काव्य । यह उनको देख कर ही समझा जा सकता था। संतकवि कबीर की तरह अखंड और फक्कड़! खादी की मोटी धोती और गंजीनुमा कुर्ता! वह भी मोटे खादी का। बेतरतीब बिखरे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और उसमें भी छोटा क़द ! यह सबकुछ उन्हें एक विचित्र सा, किंतु स्तुत्य व्यक्तित्व प्रदान करता था। एक निरंतर गतिमान, महात्मा बुद्ध के उद्घोष - "बहुजन हिताए, बहुजन सुखाए, लोकानुकंपाए, चरैवेति! चरैवेति!” के प्रत्यक्ष और जीवंत उदाहरण थे बाबा! इसीलिए कहीं एक जगह ठहर नहीं सकते थे। इसीलिए उनका एक उपनाम 'यात्री जी' भी हो गया।
यह बातें, 'यात्री जी', 'बाबा', 'जनकवि' आदि अनेकों उपनाम से चर्चित रहे प्रणम्य कवि पं वैद्यनाथ मिश्र 'नागार्जुन' की जयंती पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुस्तक लोकार्पण-समारोह और लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि नागार्जुन जो थे, वही उनकी कविता भी थी। जो देखा, जो सुना, जो भोगा, वही लिखा!
इस अवसर पर, विदुषी हिन्दी और भोजपुरी की लेखिका डा पूनम आनंद की भोजपुरी कहानियों के लोकार्पित संग्रह 'एक से एकइस' के लिए अपनी शुभकामनाएँ देते हुए डा सुलभ ने कहा कि पूनम जी की कहानियाँ लोक-जीवन के विविध पक्षों, रंगों, भाव-तरंगों और दुःख-दर्द की गहरी अभिव्यक्ति करती हैं। 'एक से एकइस' में, जो समृद्धि और ऊन्नति की एक लोकोक्ति भी है, लेखिका ने अपने कथा-सामर्थ्य का मूल्यवान परिचय दिया है। इसके पूर्व सिक्किम के पूर्व राज्यपाल और समारोह के उद्घाटन करता गंगा प्रसाद ने पुस्तक का लोकार्पण किया तथा बाबा नागार्जुन की स्मृति को नमन करते हुए, लेखिका को बधाई दी।
दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर, चर्चित पत्रकार श्रीकांत प्रत्युष, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और कवि बच्चा ठाकुर, पूर्व उपसमाहर्ता आनंद बिहारी प्रसाद, डा सुनील चंपारणी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने 'कबाड़ में' शीर्षक से, विभारानी श्रीवास्तव ने 'खींचा-तानी', जय प्रकाश पुजारी ने 'बरगद', सागरिका राय ने 'कुदरत', 'गार्गी राय ने 'बसेरा', अर्जुन प्रसाद सिंह ने 'निराश', श्याम बिहारी प्रभाकर ने 'डाक्टर साहेब', कुमार अनुपम ने 'नाटक', ई अशोक कुमार 'निहितार्थ' , चितरंजन लाल भारती ने 'इंसानीयत', सिद्धेश्वर ने 'शिलान्यास की राजनीति', प्रेम लता सिंह ने 'वो कौन थी', पं बालकृष्ण उपाध्याय ने 'लहू का रंग', डा विद्या चौधरी ने 'निःशुल्क' तथा मीरा प्रकाश ने मातृ-शक्ति' शीर्षक से अपनी-अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन कुमार ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन बाँके बिहारी साव ने किया। वरिष्ठ कवयित्री डौली बगड़िया, सूर्य प्रकाश उपाद्याय, अश्मजा प्रियदर्शिनी, एकलव्य केशरी, महेश 'मधुकर', डा विनीत कुमार लाल दास, वीणा कुमारी, ज्योति श्रीवास्तव, अमन वर्मा, श्याम मनोहर मिश्र, डा चंद्रशेखर आज़ाद, हरेंद्र आज़ाद, अमित कुमार सिंह, उपेंद्र पाण्डेय समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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