प्रभु कहते हैं-
मत लगाओ आरोप मुझपर, बेबुनियाद इस तरह,सारे बन्दे मेरे अपने, मुझ पर आरोप किस तरह?
सबको दिये हैं हाथ पाँव, तन मन आ़ँखें एक सी,
कर्म बुद्धि प्रयोग खुद कर, इस तरह या उस तरह।
जिसने पुरूषार्थ किया, वह आगे बढ़ता गया,
नियति मानकर जो रूका, वह वहीं रह गया।
कुछ अपने कर्म से, जमीं से फलक तक छा गये,
कोई फलक से गिरा जमीं, बस जमीं पर रह गया।
है अजब सी मानसिकता, आज मानव की यहाँ,
आरोप लगाने का सिलसिला, देखता सारा जहां।
खामियों कर्मों पर अपनी, वह कभी विचारता नहीं,
उपलब्धि खुद की बताता, दुखों पर दोष देता यहाँ ।
बस माँगना ही सीखा आदमी, शुक्रिया कहता नहीं,
पास में है जो भी उसके, उपयोग कुछ करता नहीं।
खुश रहें क्यों दूसरा, उसकी खुशी से होता दुखी,
अपनी खुशी के वास्ते, सत्कर्म क्यों करता नहीं।
अ कीर्ति वर्द्धन
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