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नालियों में ठूँसकर

नालियों में ठूँसकर

नालियों में ठूँसकर, घर का कूडा थैलियां,
रो रहे बरसात को, और दे रहे हैं गालियाँ।
बनाकर पक्के चबूतरे, घेर ली सारी जगह,
पानी अब निकले कैसे, बन्द है जब नालियाँ।

सडकें नीची रह गयी, बराबरे सब ऊँची करी,
देखते थे गाँव मे, अब शहरों की देखी गलियाँ।
बन्द कर तालाब सारे, उन पर कब्जे कर लिये,
भूलाकर कर्तव्य अपने, चलो बजायें तालियाँ।

अ कीर्ति वर्धन
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