हम तो तुम्हें समझकर अपना ,
अपना ही तुमको अपना रहे ।तुम नहीं समझे मुझे अपना ,
अपना भी सदा तू सपना रहे ।।
हम चले तुम्हें बनाने अपना ,
हमें भी तुम अब ठुकरा रहे ।
हमको देख तुम तो दीन हीन ,
दूर देख मुझे तो मुस्कुरा रहे ।।
आज हूं मैं जो कुछ जैसा भी ,
कल तुम भी ऐसे हो सकते हो ।
हम तो चले थे तुझे अपनाने ,
कल तुम स्व को खो सकते हो ।।
अपनापन में है बहुत शक्ति ,
एक बार अपनाकर देखो ना ।
दुःख सुख में हम साथ रहेंगे ,
तुम अपना बनाकर देखो ना ।।
मुझको कुछ देना मत तुम ,
मुझे लेने की कोई चाह नहीं ।
दूर से ही तुम देखा तो करो ,
मुझे लेना तुमसे है वाह नहीं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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