प्रकट न होंगे कृष्ण , कर वध दुशासन का ।
अत्याचार बढ़े जिस शासन में ,सर्वनाश हो उस शासन का ।
प्रकट न होंगे कृष्ण यहां पर ,
कर दे वध उस दुशासन का ।।
हो रही हैं आज नारी निर्वस्त्र ,
नारी संग ही बलात्कार बढ़ा ।
शरमा रही हैं ये भारत माता ,
दुर्योधन दुशासन आगे कढ़ा ।।
कलियुग का यह है रौद्र रूप ,
कैसा है शासन सुशासन का ।
प्रकट न होंगे आज ये कृष्ण ,
कर दे वध उस दुशासन का ।।
कहां खड़े युधिष्ठिर धर्मराज ,
कहां खड़े अर्जुन हैं तीरंदाज ।
बीच सभा में द्रौपदी खड़ी है ,
दुर्योधन है बैठा सभा साज ।।
लानत तुझपर मामा शकुनि ,
लानत पितामह आसन का ।
प्रकट न होंगे आज ये कृष्ण ,
कर दे वध उस दुशासन का ।।
मातपिता भी हो गए थे अंधे ,
अंधे का था संस्कार मिला ।
मातपिता भी ये हुए निरुत्तर ,
रग रग में ही अपराध खिला ।।
कहां थे ये भीम शक्तिशाली ,
कहां क्रोध तब दुर्बासन का ।
प्रकट न होंगे अब ये कृष्ण ,
कर दो वध उस दुशासन का ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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