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मोबाइल " हास्य रचना"

मोबाइल " हास्य रचना"

नित्यानंद शुक्ल

रामभरोसा पांडे का बड़ा बेटा खुश होकर अपने बाप को अपना दो साल पुराना स्मार्ट फोन दिया !! बोला!! बाबूजी इसको आप चलाइये!!

रामभरोसा जी पोते को चिल्लाकर बुलाये!! कूदना! हरे कूदना...चल इहाँ आओ , दिन रात मोबाइल चला रहा है.. कूदना दौड़कर आ गया ।

रामभरोसा जी अपनें पोते से स्मार्ट फोन चलाने के गुड़ सीखने लगे...पोते ने फेश बुक खोला और उंगलियों से घुमा घुमा के अपनें दादा को स्क्रीन दिखाने लगा। दादा देख रहे थे । अचानक रामभरोसे जी चिंहुक गए और चिल्लाए!! रोक...रोक...ई तो मनोरमा का फोटो लागत हौ?

उन्हें मनोरमा याद आ गई। उनकी क्लास फेलो मनोरमा ।कालेज के दिनों मनोरमा के दीवाने थे रामभरोसे जी !! चोरी चोरी पिछले बेंच पर बैठे बैठे उसी को निहारते थे। कभी श्यामपट्ट के तरफ नहीं देखते थे।

उस वक्त मनोरमा के पिता मनोरमा की शादी खोज रहे थे। एक दिन अपनी बेटी के लिए रामभरोसे पांडे के घर भी आये। रामभरोसे को खुशी का ठिकाना नहीं था। उस दिन रामभरोसे पांडे की जिंदगी का सबसे खुशनुमा दिन था। जिसके दीवाने थे उसका बाप खुद उनसे मनोरमा की शादी के लिए उनके बाप के पास आया था।

कुंडलियों का आदान प्रदान हुआ। मगर राहु केतु "मशीनगन" और हाथ में बमों का झोला लिए मनोरमा और रामभरोसा के बीच खड़े थे। मनोरमा की कुंडली मंगली निकली। रामभरोसे पांडे रोते रह गए।

रामभरोसे की शादी अन्यत्र हो गई। रामभरोसे बीबी पाकर मनोरमा को भूलते गए...मगर आशिकाना नहीं गया ।
आज अचानक मोबाइल में मनोरमा की तस्बीर देखकर पुनः प्रेम उमड़ पड़ा...
पोते से बोले!! बाबू इस फोटो वाली से बात हो जावेगी?

हाँ दादा अभी सर्च करता हूँ...सर्च करने पर नम्बर मिल गया।

पोते ने फोन मिला दिया...घंटी बजने लगी। उधर से महिला की आवाज आई ..हेलो...हेलो..कौन?

रामभरोसे ने फोन पोते से छीन लिया और भावुक होकर बोले!! अरे, हम रामभरोसा पांडे।

कौन रामभरोसा पांडे? उधर से आवाज आई।

अरे हम ,उहे हैं ...जवन तुम्हारे साथ पढ़े है!! रामभरोसा बोले।

लेकिन हमारे साथ कोई रामभरोसा तो नहीं पढ़ा..और नही उसे मैं जानती हूँ।
अरे मनोरमा जी !! आपके बाबूजी हमसे शादी करने आये थे।

मनोरमा? मनोरमा??अरे यह तो मेरी दादी का नाम है!! उधर से लड़की ने बताया।

जरा अपनी दादी को फोन दो तो बिटिया!! रामभरोसे ने याचना किया।

लड़की ने दादी को फोन दे दिया...

हेलो..मैं मनोरमा बोल रही हूँ!! कहिए क्या बात है? मनोरमा ने पूछा।

देखिए मंगला.. मंगली का दोष बेटे..पोते होने के बाद खत्म हो जाता है... राहु केतु अब क्या बिगाड़ेगा ?? शादी होने में अब कोई हर्ज नहीं है। अपने बाबूजी से कह दीजिए कि किसी पंडित से पूछ लें...मंगला के चक्कर में जिंदगी भर नहीं पडना चाहिए। मैं तो हूँ ही !!!! राहू केतू तो अब मेरे अडोस पड़ोस में ही रहते हैं ...इनके अंदर दम नहीं कि रामभरोसा पांडे का बाल भी बांका कर सकें !!!

अरे!!! ये कोई पागल लगता है! आवाज आई और फोन कट गया।

रामभरोसा पांडे मोबाइल पर चिल्लाए!! मनोरमा जी , मैं तब भी रिश्क लेने को तैयार था । मैं यह जानता होता कि आपकी कुंडली मंगली है तो मैं भी अपनी कुंडली मंगला वाला बनवा लिया होता !!

लेखक नित्यानंद शुक्ल, कुशीनगर के द्वारा स्वरचित|

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