छीन लिया बचपन
छीन लिया बचपन, जब किताबों के बोझ ने,माँ बाप की महत्वाकांक्षा, बढ़ने की होड़ ने।
देखने लगे ख़्वाब, सब सूरज पर जाने के,
हो गया बचपन बड़ा, सब पाने की सोच में।
कैसे बनायें कागज की कश्ती, काग़ज़ नहीं है,
किसी ने बना ली, चलाने की इजाज़त नहीं है।
पानी में खेलोगे तो, बीमारियाँ फैल जायेंगी,
अब तो बारिश में नहाने की भी, चाहत नहीं है।
अ कीर्ति वर्द्धन
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