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बलिदानी की ठानी थी

बलिदानी की ठानी थी

आँख उठाई जब दुश्मन ने
माटी लाल हो जाती थी
होड़ मची थी जन-जन में
बलिदानी की ठानी थी।


यादव पांडे सिंह कुमार
मर मिटने की थी तैयारी
नोंगरुन केन्गुरुसे गुप्ता
दुश्मन पर थे सब भारी।


पीछे थी बटालियन पूरी
पर घड़ी थी शहादत की
परमवीर विक्रम बत्रा ने
उठा ली सारी जिम्मेदारी।


देश पर आँच न दी आने
चित्त हो गए दुश्मन चारो खाने
भारत पर निगाहें जो उठाई
कारगिल के बदले साँसें गंवाई।


देखा था जो एक सपना
उसके सच होने की थी बारी
या तो तिरंगा फहराना था
या लिपटने की थी बारी।


कारगिल में फहराया तिरंगा
आए भी लिपटकर तिरंगे में
मातृभूमि से किया था जो वादा
निभाया अपने बलिदानों से।


उनके इस सर्वोच्च बलिदान पर
भारत का जन- जन रोया था
देशप्रेम से ओत- प्रोत होकर
सबने बलिदानी की ठानी थी।


प्रांशु गर्ग
एमबीबीएस (इंटर्न)
203/45/4 उत्तरी सिविल लाईन
सदर बाज़ार मुज़फ़्फ़रनगर 251001
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