आयरन मैन
एक सेवक ऐसा भी है ,जो करता हमारी सेवा ।
सेवक मन से सेवा करें ,
वही कहलाता है देवा ।।
काम कोई छोटा न होता ,
अपना वह जो कर्म है ।
बुरे काम में ही है बुराई ,
शेष कर्म हमारा धर्म है ।।
आयरनमैन कपड़े धोता ,
फिर करता वह आयरन ।
दाग़ सिकुड़न मिटाकर ,
वस्त्र चमका मोहता मन।।
सेवा ही है जीवन गंवाता ,
खुश करता हमारा मन ।
हमारा भी धर्म है बनता ,
कुछ दें ताकि ढक तन ।।
उसके घर भी हैं परिवार ,
उनका भी खाना पीना ।
इसी कमाई से शिक्षा दवा ,
इसी कमाई से है जीना ।।
आयरनमैन सामाजिक अंग ,
हमारे जीवन का सहायक ।
सभ्यता का अमूल्य प्रचारक ,
हमें बनाया सभ्यता लायक।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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