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सीखते और सीखते जाओ

सीखते और सीखते जाओ

सही समय पर सिखाने वाला नहीं कोई ? उच्छिन्न
न मिला तो सही नहीं कर सकते यह सोच भिन्न
शिक्षा सांसारिक परिष्कृति है
बाह्य प्रगति की श्रेष्ठ विवृति है
दीक्षा है विशेष आध्यात्मिक ज्ञान
आंतरिक सुघड़ता का उत्तम वरदान
कोई शिक्षित और पर्याप्त नवीन है
कोई दीक्षित तथा संतुलन-प्रवीण है

जीवन-रथ की बागडोर अदृश्य के हाथ है
तभी किसी- किसी में मौलिकता साथ है
नियति का खेल निराला, संसार को है पता
संसार में क्षण में क्या बदलेगा, नहीं पता

कहते हैं --उसे जीना नहीं आया जिसे मरना नहीं आया
सिखाने वाला अपने भीतर है, बुलाया और वह आया
सूक्ष्म में या स्थूल में खोए रहना भर जीवन पूर्ण नहीं
संतुलन बिना जीवन का तात्विक महत् मिला है कहीं?
अवतारी राम और कृष्ण ने संघर्ष कर संतुलन बनाये थे
विभिन्न चामत्कारिक अवतार-कालों में संतुलन बने थे

जीना न सिखाया, भूल जाओ
स्वयं ही मरना सीखते जाओ
यही है जिंदगी का सही रास्ता
बाकी बकवास से क्या वास्ता!

राधामोहन मिश्र "माधव"
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