कहीं गगन से मौत बरसती,
बाढ प्रलय सौगात बरसती।बूँद बूँद को प्यासी धरती,
राह देखती- आँख बरसती।
कल आये थे थोड़े बादल,
आस लिए थे थोड़े बादल।
लगी मानसून की दस्तक,
कुछ बरसे थे थोड़े बादल।
बुझी नही है प्यास धरा की,
फिर तुम आ जाओ बादल।
रिमझिम बरसों धरा प्यासी,
प्यास बुझा दो प्यारे बादल।
हरी भरी जब धरती होगी,
फल फूल अन्न भरी होगी।
धानी चुनरी ओढ धरा फिर,
शुद्ध स्वच्छ प्रदूषण मुक्त होगी।
अ कीर्ति वर्द्धन
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