मैं प्रकृति हू
मैं प्रश्न करना चाहती हुं तुम से
क्यों मेरी हवाओं मे ज़हर घोल रहे हो ?
क्यों मेरे पानी को अशुद्ध बना रहे हो ?
क्यों मेरे पेड़ो को काट रहे हो ?
क्यों पंछियो और जानवरो को बेघर कर रहे हो ?
क्यों हर जगह बस अपना शहर बसा रहे हो ?
क्यों बेकसूर जानवरो को मार रहे हो ?
मनुष्य ! तुम प्रकृति के नियमों से क्यो खिलवाड़ कर रहे हो ?
तुम क्यो प्रकृति के नियम बदलना चाहते हो ?
मत भूलो कि मैं प्रकृति हु और तुम इंसान हो,
मत विद्वांश करो मेरा ,
जिस दिन अंत निकट होगा ,
सुनामी मे बह जाओगे ,
तूफानों में उड़ जाओगे ,
मेरी आग मे जल के ,
राख बन कर रह जाओगे ,
मेरी प्रार्थना है तुम से मत बर्बाद करो मुझे ,
मैं प्रकृति हू
प्रश्न करना चाहती हुं तुम से
प्रश्न करना चाहती हुं तुम से ।
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