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विजयी भव

विजयी भव 

ऋचा श्रावणी
बचपन का वह दौर था मेरा
शत्रुओं ने उपद्रव मचाया था
कारगिल हमसे छीनने
घुसपैठ्या था आया


मुशर्रफ ने क्या चाल चली थी
गोलियां खूब जमकर चली थी
भूल गया था की हम है कौन
जिसके बल के आगे गिनती
नहीं थी उसकी


नेता थे हमारे श्री अटल बिहारी
उनकी थी करी चौकीदारी
तेरा अल्लाह हो अकबर
कुछ ना कर पाया
हमारी सेना के साथ खरे थे
बजरंग बली


जब आर्थिक स्थिति चरमरा गई
सबने अपनी तनख्वाह दे डाली
हमने भी कुछ दान किया
जवानों के साथ खड़ा हो गया
एक एक देशवासी


विषम थी वह परिस्थिति
_४० डिग्री की स्तिथि थी
लेकिन हौसला देखो इन
जबाज़ों का
दुश्मनों की बोलती बंद कर दी थी


हैं नमन उन वीर सपूतों को
जो वीरगती को प्राप्त हुए
हैं नमन उन माओ का
जो इन शूरवीरों को जन्म देती है
सीने पर पत्थर रखकर
जंग पर भेजती है
है नमन उन वीर वधुओ का
जो अपने अरमानों का गला दबाती है
अपनी चुटकी भर सिंदूर देकर
मां भारती की बिंदिया सजाती है
हैं नमन उन वीर बहनों का
जो अपनी राखी का बलिदान देती है
यह जानती है की उसका भाई वापस नहीं आयेगा
फिर भी उम्मीद की ज्योत जलाती है
बच्चे जब पिता के बारे में पूछते है
उनके वीर गाथा जब सुनते है
इस मिट्टी में हैं इतनी शक्ति
हम एक को खोते है
तो १० को जनम देते है
यह वीर भूमि
हमारी जन्म भूमि
जय जय जय
भारत भूमि युगै यूगै।कारगिल विजय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🫡
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