महक , खुशबू , सुगंध पुष्पों में मानव का ,
गुलाब होता है मित्र ।गुलाब के पुष्प से ,
बनता सुगंधित इत्र ।।
दिखने में सुंदर न्यारा ,
अंदर से भरा सुगंध ।
जस बाहर तस भीतर ,
कहीं नहीं है दुर्गंध ।।
गुणों से होता परिपूर्ण ,
अंदर बाहर एक समान ।
बाहर से जितना प्यारा ,
अंदर से वही सम्मान ।।
जो गुणी गुणों से भरा ,
दुश्मन हैं उसके हजार ।
गुणी मरने से डरे नहीं ,
सबके बीच दिखे बाजार ।।
गुलाब को रखे सुरक्षित ,
उल्टे लटके ही कांटे ।
दोनों रहते संग ही संग ,
सुखदुख मिल बांटे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com