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तोडकर कच्चे घरो को, पक्के मकां बनने लगे

तोडकर कच्चे घरो को, पक्के मकां बनने लगे,

रिश्ते ताऊ चाचा के थे, अंकल आन्टी बनने लगे।
था बहुत सद्भाव घरों में, रिश्तों में भी मिठास थी,
स्वार्थ की आँधी चली तो, रिश्ते भी दरकने लगे।
खिंचने लगी दीवार घरों में, और भाई से भाई जुदा,
खर्च की चर्चा चली जब, माँ बाप बँटने लगे।
कल तलक थी जां निसार, एक दूजे के लिये,
औरतों की बात में आ, दुश्मनी समझने लगे।
दहेज की धारा लगेंगी, जो हाँ में हाँ बोले नही,
दबाव कुछ ऐसा पडा, जिगर के टुकडे लडने लगे।
बच्चों के मन में आज हमने, जहर ऐसा घोल डाला,
बच्चे भी घर के बडों से, बदजुबानी करने लगे।

अ कीर्तिवर्धन
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