चिट्ठियाँ
चिट्ठियाँजोडती हैं
परिवारों को
गाँवों, शहरों
राष्ट्रों को।
चिट्ठियाँ
जीवित रखती हैं
रिश्तों को
सभ्यता संस्कृति को
और बनती हैं
इतिहास
एक काल से
दूसरे काल का।
चिट्ठियाँ
दौडती हैं
बहुत तेज
लाती हैं
सुख दुख खुशी
और अवसाद भी।
चिट्ठियाँ
खो जाती हैं
कभी कभी
किसी दुष्ट डाकिये के
हाथों में पडकर।
और तब
मात्र
नही खोती
चिट्ठियाँ
बल्कि
खो जाता है
एक संसार
किसी का
किसी के लिये
जब नही मिलता
समाचार
किसी की मृत्यु
जन्म का
खोने या पाने का
अथवा
छूट जाता है
अवसर
नौकरी पाने का
चिट्ठी
न मिल पाने के कारण।
चिट्ठियाँ
कभी कभी
वर्षों के बाद
मिल जाती हैं
इतिहास बनकर
और
जीवंत कर देती हैं
बीता हुआ कल
आज के
हाथों में पडकर।
चिट्ठियाँ
बहुत ही
लाजवाब होती हैं
भूली बिसरी
खट्टी मीठी
यादों का
दस्तावेज होती हैं।
अ कीर्तिवर्धन
53 महालक्ष्मी एनक्लेवमुजफ्फरनगर 251001
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