शब्द जब संगीत बनते हैं।।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
बुझे मन के द्बार पर जब
किसी मुक्ता हार पर तब
झलकती सी किरण के
अंतर्मुखी मनुहार पर सब
अन्यथा ही मीत बनते हैं।।
शब्द जब संगीत बनते है।।
भाव की आकुल सघनता
और उत्सव सी विकलता।
क्रौंच पीड़ा के निकष पर
नेह मधु का पौध पलता
तभी मानस प्रीत रचते हैं।।
शब्द जब संगीत बनते हैं।।
राग के आफलक मनहर
साज संवर्धित सुखद स्वर
ताल- लय संवर्धनाश्रित
मुग्ध करते मृदुल मंथर।।
प्राण तंत्र अभीत बनते हैं।।
शब्द जब संगीत बनते हैं।।
राग में अनुराग छंदित
सप्त स्वर संधान वंचित।
मध्य तीव्र विशेष गुंफन
मुग्धता होती प्रकंपित।।
भारती का अंक भरते हैं।।
शब्द जब संगीत बनते हें।।
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