आओ निज से प्यार करें
निजता से ये बंधी है दुनिया ,निजता को ही स्वीकार करें ।
निजता के पावन बंधन में ही ,
आओ निज को ही प्यार करें ।।
आए तो हैं अकेले ही धरा पे ,
अकेले ही यहां से जाना है ।
जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें ,
हर समय भी यही बिताना है ।।
निजता के जीवन को अपने ,
आओ सहर्ष ही स्वीकार करें ।
स्व से बंधे हर नियमों को भी ,
आओ सहर्ष ही अंगीकार करें ।।
हुई थी सृष्टि जब यही आरंभ ,
नर का ही तब स्वावलंबन था ।
नारी भी आई कुछ दिन बाद में ,
तब नारी का ही अवलंबन था ।।
जीवन जीवन का पूरक होता ,
आओ जीवन हम निखार करें ।
निजता के पावन बंधन में ही ,
आओ निज को ही प्यार करें ।।
मां ने हमें जब जन्म दिया तो ,
मां का दूध ये कहां से आता है ?
तेरे हेतु मां कीं पौष्टिक भोजन ,
तब मां का दूध भी तू पाता है ।।
तेरे जीवन हेतु कई जीवन मिले ,
हर जीवन को ही आधार वरें ।
हर जीवन पे हर जीवन आश्रित ,
आओ जीवन का आभार करें ।।
कुछ बड़े हुए तो खेलने ही हेतु ,
कुछ संगी मित्र तुम बनाए थे ।
घर परिवार को को छोड़ तुम ,
मित्रों संग भी पल बिताए थे ।।
माता पिता परिवार मित्र को ,
आओ नमन भी इजहार करें ।
बस जाएं हम सबके दिल में ,
आओ निज को ही तैयार करें ।।
कुछ और बड़े हो स्कूल में गए ,
शिक्षकगण का सहयोग मिला ।
शिक्षा पाकर ही तुम योग्य हुए ,
कमल सदृश तेरा हृदय खिला ।।
हर जीवन के तुम हुए आभारी ,
नहीं किसी से भी किनार करें ।
जीवन ही जीवन का सहयोगी ,
जीवन को नहीं शर्मसार करें ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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