मोदी सरकार के नौ साल - विद्युत क्षेत्र का संपूर्ण कायाकल्प,केन्द्रीय विद्युत मंत्री, आर.के. सिंह
पिछले नौ वर्षों के दौरान, मोदी सरकार ने विद्युत क्षेत्र में उल्लेखनीय बदलावों को संभव बनाया है। निरंतर लोड शेडिंग और बिजली की कमी वाले दिन अब इतिहास हो गए हैं। वर्ष 2014-15 से पहले, बिजली की आपूर्ति में होने वाला घाटा आश्चर्यजनक रूप से 4.5 प्रतिशत था। हालांकि, 2014 में इस सरकार के कार्यभार संभालने के बाद से बिजली उत्पादन क्षमता में 185 गीगावॉट की प्रभावशाली वृद्धि की गई है। इसके साथ भारत बिजली की कमी वाले देश की जगह अधिशेष बिजली वाला देश बन गया है। आज हमारी कुल स्थापित क्षमता 417 गीगावॉट है, जोकि 222 गीगावॉट की चरम मांग से लगभग दोगुनी है। परिणामस्वरूप, भारत अब पड़ोसी देशों को बिजली का निर्यात कर रहा है।
पारेषण (ट्रांसमिशन) के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। वर्ष 2013 के बाद से, लगभग दो लाख सर्किट किलोमीटर तक फैली पारेषण लाइनों का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया गया है जो पूरे देश को एक ही आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) पर संचालित होने वाले एक एकीकृत ग्रिड से जोड़ता है। इन पारेषण लाइनों में 800 केवी एचवीडीसी जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया गया है और ये समुद्र तल से 15000/16000 फीट की ऊंचाई पर स्थित श्रीनगर - लेह लाइन सहित कुछ सबसे चुनौतीपूर्ण व दुर्गम इलाकों से होकर गुजरती हैं। देश के एक कोने से दूसरे कोने तक 112 गीगावॉट बिजली स्थानांतरित करने की क्षमता ने भारत को एक एकीकृत बिजली बाजार में बदल दिया है, बिजली स्थानांतरित करने की यह क्षमता 2014 में मात्र 36 गीगावॉट की थी। स्थानांतरण की इस क्षमता की सहायता से वितरण कंपनियों को देश भर में किसी भी उत्पादक कंपनी से प्रतिस्पर्धी दरों पर अधिकतम बिजली खरीदने की सहूलियत मिल गई है। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर बिजली मिलने लगी है।
सभी लोगों तक बिजली पहुंचाना इस सरकार के प्रयासों का एक प्रमुख फोकस रहा है। हमारी सरकार के सत्ता में आने से पहले, आज़ादी के 67 साल बाद भी 18,000 से अधिक गांव और कई बस्तियां बिजली से वंचित थीं। अगस्त 2015 में, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 1000 दिनों के भीतर हर गांव को विद्युतीकृत करने के लक्ष्य की घोषणा की थी। पहाड़ी क्षेत्रों और रेगिस्तानी इलाकों में लॉजिस्टिक से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, सरकार ने निर्धारित समय से 13 दिन पहले, केवल 987 दिनों में ही यह लक्ष्य हासिल कर लिया। इस उपलब्धि को अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने 2018 में ऊर्जा क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण खबर के रूप में मान्यता दी थी।
इस सफलता को आधार बनाकर आगे बढ़ते हुए, सरकार ने हर घर को बिजली से जोड़ने का लक्ष्य रखा। उल्लेखनीय तरीके से, यह लक्ष्य 18 महीनों के भीतर ही हासिल कर लिया गया और कुल 2.86 करोड़ घरों को बिजली से जोड़ा गया। बिजली पहुंचाने की दिशा में यह तेज प्रसार ऊर्जा क्षेत्र के इतिहास में अभूतपूर्व है, जिसे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी से मान्यता मिली है। मोदी सरकार की नीति यह सुनिश्चित करने की है कि कोई भी पीछे न छूटे।
वितरण प्रणालियों को मजबूत करने के उद्देश्य से, सरकार ने सभी राज्यों में दो लाख करोड़ रुपये से अधिक की स्वीकृत लागत से व्यापक योजनाएं लागू कीं। इन योजनाओं में नए सबस्टेशनों का समावेश करना, मौजूदा सबस्टेशनों को उन्नत करना, ट्रांसफार्मर की स्थापना और हजारों किलोमीटर लंबी एलटी व एचटी लाइनों का निर्माण एवं उन्हें बदलना शामिल था। इन प्रयासों की सहायता से ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की औसत उपलब्धता 2015 में 12 घंटे से बढ़कर आज 22.5 घंटे हो गई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में अब औसतन 23.5 घंटे बिजली की आपूर्ति हो रही है। परिणामस्वरूप, डीजी सेट का बाज़ार अब समाप्त हो गया है!
सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा पर अपना ध्यान केन्द्रित करके पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है। वर्ष 2015 में, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 2022 तक 175 गीगावॉट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य की घोषणा की थी। वर्तमान में, कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों के तहत अतिरिक्त 84 गीगावॉट के साथ भारत ने 172 गीगावॉट की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की है। इस विकास ने भारत को नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाले देश के रूप में स्थापित किया है। अपनी इस ख्याति के कारण भारत ने दुनिया भर के प्रमुख कोषों से निवेश को आकर्षित किया है। इसके अलावा, भारत ने निर्धारित समय से नौ साल पहले ही 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से 40 प्रतिशत बिजली उत्पादन क्षमता की अपनी प्रतिबद्धता हासिल कर ली है। वर्तमान में, स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 43 प्रतिशत हिस्सा यानी कुल 180 गीगावॉट गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से आता है।
सरकार उत्सर्जन की तीव्रता को कम करने में भी सफल रही है। वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में उत्सर्जन की तीव्रता को 33 प्रतिशत - 35 प्रतिशत तक कम करने के लक्ष्य को हासिल करके, भारत ने खुद को वैश्विक तापमान में 2-डिग्री से कम वृद्धि करने के विचार के अनुरूप चलने वाले एकमात्र जी-20 देश और प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित किया है, उजाला (एलईडी वितरण), ‘प्रदर्शन करें, उपलब्धि हासिल करें और व्यापार करें’ [परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड (पीएटी)], उपकरणों के लिए स्टार रेटिंग कार्यक्रम और ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र जैसे विभिन्न कार्यक्रमों ने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में प्रति वर्ष 159 मिलियन टन की कमी लाने में योगदान दिया है। व्यावसायिक और आवासीय भवनों में ऊर्जा संरक्षण के उद्देश्य से तैयार किया गया बिल्डिंग कोड इस दिशा में एक और बड़ा कदम है। हमने अब 2005 के स्तर के मुकाबले 2030 तक अपने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को एक बिलियन टन और हमारी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने का संकल्प लिया है। इन लक्ष्यों को भी हम 2030 से पहले हासिल कर लेंगे।
संपूर्ण विद्युत क्षेत्र में व्यापक सुधार लागू किये गये हैं। वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में दक्षता और वित्तीय अनुशासन में सुधार लाने हेतु वित्तपोषण को एटीएंडसी संबंधी नुकसान में कमी के साथ जोड़ना, ऊर्जा लेखांकन और ऑडिट को लागू करना तथा राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी का समय पर भुगतान सुनिश्चित करना जैसे विभिन्न उपाय किए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप, डिस्कॉम कंपनियों का एटीएंडसी संबंधी नुकसान वित्तीय वर्ष 2021 में 22 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2022 में 16.44 प्रतिशत रह गया है। डिस्कॉम कंपनियों के यहां बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों (जेनकॉस) का विरासती बकाया घटकर लगभग आधा - 1.4 लाख करोड़ रुपये से 80 हजार करोड़ रुपये - हो गया है। डिस्कॉम कंपनियों द्वारा ली जाने वाली बिजली के लिए किया जाने वाला वर्तमान भुगतान अद्यतन है।
सबसे कुशल उत्पादन स्टेशनों को पहले शेड्यूल करने संबंधी लचीलेपन की अनुमति देकर, हमने उपभोक्ताओं के लिए बिजली की लागत कम कर दी है। ‘रीयल-टाइम मार्केट’ की शुरूआत के जरिए और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए अलग-अलग ‘टर्म अहेड’ और ‘डे-अहेड मार्केट’ स्थापित करके बिजली के बाजार का विस्तार भी किया गया है।
ऊर्जा रूपांतरण की दिशा में प्रयास के तहत, हमने ताप विद्युत संयंत्रों में तापीय ऊर्जा के साथ नवीकरणीय ऊर्जा की बंडलिंग और बायो-मास को-फायरिंग की अनुमति दी है। 100 किलोवाट या इससे अधिक जुड़े भार वाला कोई भी उपभोक्ता अब ऐसे उत्पादन संयंत्रों से नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त कर सकता है। सरकार पीएलआई के जरिए सौर पीवी सेल के उत्पादन और व्यवहार्यता अंतर वित्त पोषण के साथ बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली को समर्थन प्रदान कर रही है।
जलविद्युत क्षेत्र, जो मंद पड़ा था, को लगभग 15 गीगावॉट की निर्माणाधीन परियोजना के साथ फिर से सक्रिय किया गया है। विद्युत चालित वाहनों (ईवी) के लिए चार्जिंग संबंधी अवसंरचना स्थापित करने के नियमों व दिशानिर्देशों को सरल बनाया गया है और घरेलू कनेक्शन से चार्जिंग संभव हो गई है। विवाद समाधान तंत्र अब एक महीने के भीतर विवाद का निपटारा करता है।
संक्षेप में, मोदी सरकार ने विद्युत क्षेत्र में उल्लेखनीय बदलाव किए हैं। उत्पादन क्षमता के विस्तार, पारेषण (ट्रांसमिशन) नेटवर्क के प्रसार, बिजली को सुलभ बनाने, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और व्यापक सुधारों को लागू करने पर ध्यान देकर भारत ने इस क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं। पर्यावरण, ऊर्जा दक्षता और सतत विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता ने भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित किया है। नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में और ऊंचे लक्ष्य तथा उत्सर्जन में और अधिक कटौती करने के इरादे के साथ, मोदी सरकार ने भारत के विद्युत क्षेत्र के भविष्य को सशक्त बनाने की दिशा में कदम बढ़ाना जारी रखा है।
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