गहन रात्रि में भी देखो, किरण भोर की आती है
गहन रात्रि में भी देखो, किरण भोर की आती है,चीरकर सीना अंधकार का, जीवन आस जगाती है।
कभी कभी प्यासे मरते को, जहर भी जीवन देता है,
विपत आपदा में प्रकृति, जीवन का सार सुनाती है।
बाहर निकल अम्बर में देखो, नील गगन और तारों को,
भूल गये बचपन की बातें, सप्तर्षि मंडल ध्रुव तारे को।
कितनी चिड़िया और परिन्दे, उपवन में जाकर तो देखो,
तितली कैसे रंग बाँटती, कली कली पर भँवरों को।
बड़ा देश है विपदा भारी, हर संकट पर संयम भारी,
खान पान पर करो नियंत्रण, आयुर्वेद से बचना जारी।
घर आँगन उपवन में जाना, प्रकृति संरक्षण हाथ बढ़ाना,
साफ सफाई भी बहुत जरूरी, विपदा से बचने की तैयारी।
अ कीर्ति वर्द्धन
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