बारिश
चम चम चमकत बाटे ,
घटा भईले करिया।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
अगल बगल खूबे बरखे ,
हमनी के तरसावेला ।
हमनी बईठल मुंह ताकीं ,
बगले में बरखावेला ।।
गांव के जईसे नजर लागे ,
टांगे पड़ी हंड़िया ।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
बारिश बिना तड़पत बाटे ,
इहवां के किसान बा ।
भगवानो के दया नईखे ,
ना कवनो रुझान बा ।।
अगल बगल खूब बरखे ,
जईसे बहे दरिया ।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
आषाढ़ के बदले सावन में ,
मकई अब बोआईल बा ।
धान के बीचडा़ पड़ल बाटे ,
पानी बिन मन तरसाईल बा ।।
टिपिर टिपिर बरखत बाटे ,
खाली छईले बा अंधरिया ।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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घटा भईले करिया।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
अगल बगल खूबे बरखे ,
हमनी के तरसावेला ।
हमनी बईठल मुंह ताकीं ,
बगले में बरखावेला ।।
गांव के जईसे नजर लागे ,
टांगे पड़ी हंड़िया ।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
बारिश बिना तड़पत बाटे ,
इहवां के किसान बा ।
भगवानो के दया नईखे ,
ना कवनो रुझान बा ।।
अगल बगल खूब बरखे ,
जईसे बहे दरिया ।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
आषाढ़ के बदले सावन में ,
मकई अब बोआईल बा ।
धान के बीचडा़ पड़ल बाटे ,
पानी बिन मन तरसाईल बा ।।
टिपिर टिपिर बरखत बाटे ,
खाली छईले बा अंधरिया ।
घन घन गरजत बाटे ,
बरखे ना बदरिया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
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अरुण दिव्यांश
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