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हिमालय पुत्री गंगा

हिमालय पुत्री गंगा

जनकल्याण के लिए
हिमालय से उतरी।
भगीरथ के पुरखों को
मोक्ष प्रदान कर
आगे बढ़ गयी।
पिता के आँगन की
देहरी पार करना
मर्यादाओं से खिलवाड़ नहीं
अपितु
जन कल्याण भावना थी।
पवित्रता पर
कीचड़ उछालना
कुत्सित मानसिकता
सदैव करती रही।
परन्तु
निष्कलंक गंगा
अपने मार्ग पर
निरन्तर बढ़ती रही।
कलुषित विचारधारा वाले
उसी पवित्र गंगा में
अपने पाप धोते रहे
और
गंगा की पवित्रता पर
नागफनी बोते रहे।
गंगा
जिसने तार दिये
भगीरथ के पूर्वज
धोती हुए पाप
पापियों
और
नास्तिकों के
पहुँच जाती है
सागर तक
और बना देती है
सागर को भी
गंगा सागर।
कब और कहाँ
किसने किया
गंगा का मुख काला?
कब मरी
वह डूब कर?
कब उछाला
कीच
पिता पर,
कब हनन
मर्यादाओं का किया?
जीवन दायिनी
मोक्ष दायिनी
अमृत जल से
अभिसिंचित
गंगा
हमारी बुद्धि की
मलीनता
और विकारों को भी
दूर करे।
नास्तिकता के भँवर में
गोते लगा रहे
पापियों को
पूर्ण मुक्ति का मार्ग
प्रशस्त करे।

अ कीर्ति वर्द्धन
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