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मनुज जब बन नर -पिशाच चला करेगा

मनुज जब बन नर -पिशाच चला करेगा

डॉ रामकृष्ण मिश्र

मनुज जब बन नर -पिशाच चला करेगा
मणी पुर -सा दर्द भी डरने लगा।।
भेडिये जब आदमी की खाल में
चलेंगे , फिर अशुभ उनके जाल मे
विवशता की चीख हौगी अनसुनी
अश्रु घड़ियाली बहेगी हाल में।।
क्रोध भी तब मान में जलने लगा।।


निरापद कैसे हँसेगी वन-लता
बाज के पंजे लहू में सने हैं।
आज बहसीपन हुआ निर्लज्ज है
भृकुटि के आवेश कितने तने हैं।।
राजपथ से धुआँ सा उठने लगा।


सियासी चौपड़ बिछाया जा रहा
दोमुहा जलसा मनाया जा रहा।
देह की चौह्दियो के पार अब
शर्म का कंबल बिछाया जा रहा।।
कुर्सियों का गीत फिर बजने लगा ।।
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रामकृष्ण
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